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कुछ लिख रही हूं हम सभी के लिए
ध्यान दीजिएगा इस पर, कि आप के आसपास भी ऐसे कई लोग होंगे।कुछ ग़लत लगे तो माफ़ कीजियेगा।
डॉक्टर तृप्ति खटाना
विनोद के पिताजी बूढ़े हो गए थे और चलते समय वह दीवार का सहारा लेते थे।
नतीजतन, वे दीवारें जहाँ से भी छूते थे, वहाँ से दीवार का रंग उतर जाता था या दीवारों पर उनके उंगलियों के निशान पड़ जाते थे।
उसकी पत्नी यह देखती और अक्सर गंदी दिखने वाली दीवारों के बारे में शिकायत करती।
एक दिन, विनोद के पिता के सिर में दर्द हो रहा था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर थोड़ा तेल मालिश किया। जैसे ही उठकर चले। चलते समय दीवारों पर उनके तेल के हाथ के दाग लग गए।
उसकी पत्नी यह देखकर उस पर चिल्लाई, और विनोद भी अपने पिता पर चिल्लाया और उनसे बदतमीजी से बात की। उन्हें सलाह दी कि वे चलते समय दीवारों को न छुएँ।
विनोद के पिता बहुत दुखी लग रहे थे। विनोद को भी अपने व्यवहार पर शर्म आ रही थी, लेकिन उसने अपने पिता से कुछ नहीं कहा। उसके पिता जी ने चलते समय दीवार को पकड़ना बंद कर दिया, और एक दिन गिर पड़े। वे कुछ दिनो तक बिस्तर पर पड़ गए और कुछ ही समय में वह यह दुनिया छोड़कर स्वर्ग चले गए।
विनोद को अपने दिल में अपराधबोध महसूस हुआ और वह अपने उन भावों को कभी नहीं भूल पाया और कुछ ही समय बाद अपने पिता के निधन के लिए खुद को माफ़ नहीं कर पाया।
कुछ समय बाद, वह अपने घर की पेंटिंग करवाना चाहता था। जब पेंटर आए तो विनोद के बेटे ने, जो अपने दादा को बहुत प्यार करता था, उसने पेंटर को उसके दादा जी के फिंगरप्रिंट साफ करने और उन जगहों पर पेंट ना करवाने के लिए मना कर दिया विनोद ने भी अपने बेटे के जिद करने पर अपनी अनुमति दे दी।
पेंटर भी बहुत अच्छे थे, उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वे उसके पिता के फिंगरप्रिंट/हाथ के निशान नहीं मिटाएंगे, बल्कि इन निशानों के चारों ओर एक सुंदर घेरा बनाकर एक अनूठी डिजाइन बनाएंगे।
इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा और वे निशान उसके घर का हिस्सा बन गए थे। विनोद के घर आने वाला हर व्यक्ति उस अनोखे डिजाइन की प्रशंसा करता था।
समय के साथ, मैं विनोद भी बूढ़ा हो गया। अब उसे भी चलने के लिए दीवार के सहारे की जरूरत पड़ती थी। एक दिन चलते समय, विनोद को अपने पिता से कहे गए शब्द याद आ गए और उसने बिना सहारे के चलने की कोशिश की। विनोद के बेटे ने यह देखा और वह तुरंत उसके पास आया और उन्हें दीवार का सहारा लेने के लिए कहा, चिंता व्यक्त करते हुए कि मैं बिना सहारे के गिर जाऊंगा, विनोद ने महसूस किया कि उसका बेटा उसको पकड़ रहा था।
विनोद की पोती तुरंत आगे आई और प्यार से, उसे सहारा देने के लिए अपना हाथ उसके कंधे पर रखने के लिए कहा। विनोद चुपचाप से रोने लगा कि अगर मैंने अपने पिता के लिए भी ऐसा ही किया होता, तो वे लंबे समय तक जीवित रहते।
उसकी पोती उसे साथ ले गई और सोफे पर बैठा दिया। फिर उसने विनोद को दिखाने के लिए अपनी ड्राइंग बुक निकाली।
उसकी शिक्षिका ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की और उसे बेहतरीन टिप्पणियाँ दीं! स्केच दीवारों पर उनके पिता के हाथ के निशान का था।
स्केच के नीचे शीर्षक लिखा था..
“काश हर बच्चा बड़ों से इसी तरह प्यार करता”।
सीख
हम भी समय के साथ वृद्ध हो जाएंगे। कर्म व बात करने से पहले सोच ले। यह आपके साथ भी हो सकता है, तो आपको कैसा लगेगा। आइए अपने बड़ों का ख्याल रखें और अपने बच्चों को बड़ों का मान सम्मान करना जरूर सिखाएँ। हमेशा स्वयं भी बडो से प्यार से बात करें। ये जरूरी नहीं कि हमेशा बड़े ही छोटों को सिखाते हैं, कभी-कभी बच्चे भी हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। आइए अपने बड़ों बुजुर्गो का ख्याल रखें। और अपने बच्चों को सामाजिक व्यवहारिकता भी सिखाएँ।