साप्ताहिक कार्यशाला मुक्तक
हमारे देश के दुश्मन कभी जब वार करते हैं।
मिटा देंगें अमन सारा यही वो धार करते हैं।
निकालो ढूॅंढ कर उनको उन्ही के साथ मिलकर जो
हमारे बीच रहकर भी सतत व्यापार करते हैं।
वीरता उनकी सभी जन की जुबानी हो गई।
अमर जिनकी इस धरा पर अब जवानी हो गई।
उन जवानों को नमन कर याद करते हम सदा
खूब पढ़ते जो अमिट उनकी कहानी हो गई।
सार छंद
पेड़ लगेंगे गर धरती पर, छायेगी हरियाली।
शुद्ध हवा मिल पायेगी फिर,जीवन देने वाली।
कोयल कूके सावन जैसे,ची ची चिड़िया बोले।
सबका ही दिल इस धरती पर,मदमाता सा डोले।
फूल जहां में खिल जायेंगे,महकेगी हर डाली
पेड़ लगेंगे गर धरती पर,छायेगी हरियाली।
सार छंद
चांदनी रात
चांदनी रात में दिखता है, हमें प्रीत का साया।
आसमान के नीचे फैली, यहां चांद की छाया।
रीत प्रीत की बड़ी निराली,गया जान जग सारा
बड़ी पाक है इस दुनिया में,बहती इसकी धारा।
सुर नर मुनि जन सबने इसका,गीत जहां में गाया
चांदनी रात में दिखता है, हमें प्रीत का साया।
हुआ उजाला रातों में भी,नहीं रहा अंधेरा
जबसे आकर यहां चांद ने,नभ पर डाला डेरा।
तारे आये टिमटिम करते,सबका मन हर्षाया
चांदनी रात में दिखता है,हमें प्रीत का साया।
मन के दुखड़े मिटते दिखते, खुशियां मन भर आई
जबसे इन पावन तारों ने,झलक हमें दिखलाई।
रोग मिटे सब जग जीवन के,सुखी हो गई काया।
चांदनी रात में दिखता है, हमें प्रीत का साया।
रचनाकार
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’मालपुरा
प्रस्तुति