जाति

जाति…

एक पेशे से लेकर बंद वर्ग तक!

जाति व्यवस्था मेरा पसंदीदा विषय नहीं है। एक सज्जन ने इस पर हमारे विचार मांगे हैं। सोचा कुछ लिखता हूं।

एक बार प्रोफेसर निश्चल (Jain degree college, Saharanpur) की कृपा से, हमें ब्रिटिश पीरियड में लैंड ओनरशिप को विस्तार से पढ़ने का अवसर मिला था। उसमें जाति व्यवस्था को नजदीकी से जाना।

वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत सभी वर्णों में स्त्री-पुरुषों की संख्या में समानुपात नहीं था। ब्राह्मण, क्षेत्रीय, वैश्य को मिलाकर तीनों से अधिक संख्या में शुद्र थे। इसका बड़ा कारण यह भी था कि कमीनों (काम करने वालों) की सर्वाधिक आवश्यकता थी। समस्त शुद्र कमीन थे।

समकालीन समाज की जरूरतों के आधार पर, सभी कामगारों ने अपने-अपने कौशल के अनुसार, जीविका कमाने के लिए, एक पेशा चुन लिया। उनकी भिन्न सामाजिक पहचान के लिए यही पेशा उनकी जाति बन गया।इसलिए शुद्र (कमीन) संख्या में बढ़ते चले गए।

उसी पेशे के लोग, उसी पेशे के लोगों से रोटी और बेटी का संबंध जोड़ते चले गए और जाति का विस्तार होता चला गया। हां, गोत्र (कुल/वंश) में विवाह करने से बचते रहे। जातियों में बंधकर लोग जीविका की सुरक्षा एवं अन्य कई प्रकार की सुरक्षा को महसूस करने लगे। जाति एक अनिवार्य एवं शक्तिशाली समूह बन गया।

अधिकांश जातियों का जन्म शुद्र वर्ण से ही हुआ है। परंतु सभी जातियों का नहीं। जो शुद्र वैश्य के साथ व्यापार में सहयोग करते थे, वे भी व्यापार में कुशलता प्राप्त करने पर, बनिए (वाणिज्य से निकला शब्द) नामक जाति से जाने जाने लगे। विपत्ति आपदा से घिरे कुछ क्षत्रिय भी कमीन (काम करने वाले) बन गए। इसलिए क्षत्रिय वर्ण से संबंधित कुछ लोग आज भी खेती करते हैं, पशु पालते हैं, मजदूरी भी करते हैं। ब्राह्मण वर्ण से भी कुछ नई जातियों के निकलने का प्रमाण है।

आरम्भ मे जाति जन्म आधारित बंद वर्ग नहीं बना था। अभी जाति ‘पेशे’ पर आधारित ही थी। कुछ पीढियो के बाद, लगातार एक पेशा अपनाए रखने के कारण, बाद में जाति बंद वर्ग बन गई।

क्षत्रिय वर्ण के लोग अपनी शासकीय पहचान के लिए अलग-अलग वंशो के नाम से जाने जाते थे । वंश के नाम की उत्पत्ति पारिवारिक, कबीले, समूह, आदि के आधार पर एक शासकीय संगठन के रूप में हुई थी। अपने-अपने राज्यों की शक्ति बढ़ाने के लिए राजवंश, अपने बच्चों के विवाह राजवंशों में ही करने लगे। उन्ही वंशो के सामाजिक-राजनीतिक संगठन को मिलाकर एक नई जाति कि नीव पड़ी जिसे राजपूत कहा गया। यह जाति सभी राजवंशों का मिश्रण है।

आज अधिकांश लोग जाति और वंश में भेद नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए वीर महापुरुषों को अपना-अपना बनाने की होड लगी हुई है। महान प्रतापी शासक मिहिर भोज गुर्जर एवं दोनों ही है। अंतर समझने का है। राजपूत और गुर्जरों में इतना ही अंतर है जितना यमुना और गंगा में।

मौसम सिंह

रामपुर मनिहारान