मकर संक्रांति पर दान देने की परंपरा है। इसी प्रसंग में कुछ   दोहे

मकर संक्रांति पर दान देने की परंपरा है। इसी प्रसंग में कुछ  दोहे

मकर संक्रांति पर दान देने की परंपरा है।

इसी प्रसंग में कुछ दोहे

रचयिता

केदार शर्मा

टोंक (राजस्थान)

 

‘दान’

सदा पात्र को दीजिए, जो भी देओ दान।
पानी डालो कीच में, होगा कीच समान।।१।।

*

रूप बदलती भीख नित, धरे अनेको वेश।
दान दया के पात्र का, पता न चलता लेश।।२।।

*

विकल अंग अरु वृद्धजन, नहीं मात अरु तात।
दया दान दें दीन को, जैसे शिशु को मात।।३।।

*

गौशाला हर गाँव हो, मिले हेतु अवदान।
जगह जगह हों शहर में, ऐसे ही स्थान।।४।।

*

शिक्षा अरु उपचार हित, सक्षम देते दान।

करुण हृदय की दुआ से, मिले पुण्य फल आन।।५।।

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धीरज धरकर बैठता, महँगा हो उपचार।

दान दया का पात्र है, ऐसा जो बीमार ।।६।।