मैं फौजी हूं

मैं फौजी हूं

“मैं फौजी हूँ!”

मैं फौजी हूॅं,मन मोजी हूॅं,
दुश्मन के लिए मैं खोजी हूॅं।

मैं सीमा पर रहता हूॅं,पर रुखी-सुखी खाता हूॅं,
मैं बहुत दिनों के बाद,अपने घर को आता हूॅं
मैं अपना फर्ज निभाता,दुश्मन को मार भगाता हूॅं,
मैं मात-पिता का राजदुलारा,वेतन कम ही पाता हूॅं,
मैं अपने परिवार की रोजी हूॅं,
मैं फौजी हूॅं ,मन मोजी हूॅं ।।
मैं सर्दी,गर्मी,वर्षा सब सहता,देशभक्ति में बहता हूॅं,
मैं वर्दी पहने,सीना ताने,भारत की जय कहता हूॅं,
मैं जंगल में मंगल करता,दुश्मन से दंगल करता हूॅं,
मैं अधिकारी की डाॅंट सहता,पर हाॅं जी,हाॅं जी कहता हूॅं,
मैं मानो तो दादा भाई नौरोजी हूॅं ,
मैं फौजी हूॅं, मन मोजी हूॅं।।
मैं तिरंगे का खफन रखता,शत्रु का रक्त चखता हूॅं,
मैं अपनी मौत मुठ्ठी में रखता,छुट्टी कभी नहीं करता हूॅं,
मैं डर को डराता,पर दुश्मन को दिन तारें दिखाता हूॅं,
मैं दिन में हथियार जुटाता, रातों में पहरा लगाता हूॅं,
मैं दुश्मन के लिए एक खोजी हूॅं,
मैं फौजी हूॅं, मन मोजी हूॅं।।
मैं कटता,लड़ता,मरता,पर दुश्मन से कभी नहीं डरता हूॅं,
मैं रक्त की बूंदें बहाता,पर पीछे कभी नहीं हटता हूॅं,
मैं जज्बात समेटे रखता,मातृभूमि की माटी चखता हूॅं,
मैं आजादी हेतु लड़ता हूॅं और आजादी हेतु मरता हूॅं,
मैं दुश्मन के लिए रोका-टोकी हूॅं,
मैं फौजी हूॅं, मन मोजी हूॅं।
मैं अपनी कुछ बात सुनाता,अंतर्मन की व्यथा बताता हूॅं,
मुझे मान-सम्मान नहीं मिलता,घर अनाथ कर जाता हूॅं,
भ्रष्टाचार के दुष्प्रभाव से,फाइलों में दबकर रह जाता हूॅं,
सबकी सुरक्षा करके भी,परिवार असुरक्षित कर जाता हूॅं,
मैं मातृभूमि का फौजी हूॅं,
मैं फौजी हूॅं, मन मोजी हूॅं।।
मैं ईश्वर की कृपा पाता,मातृभूमि हेतु शीश कटाता हूॅं,
सरकारें हमारी सुन ले,कुछ नियम हमारे हित में बुन ले,
शहीद फौजी के परिवार को, सरकारी सुरक्षा में ले-ले,
मेरे परिवार के किसी सदस्य को,सरकारी सेवा में चुन लें,
‌ मै जी जान लुटाने वाला फौजी हूॅं ,
मैं फौजी हूॅं, मन मोजी हूॅं,
दुश्मन के लिए मैं खोजी हूॅं।।

रचयिता
कवि मुकेश कुमावत मंगल

टोंक (राजस्थान)

प्रस्तुति