साल की विदाई – श्योराज बम्बेरवाल

साल की विदाई – श्योराज बम्बेरवाल

भूमिका

हर एक वर्ष अपने साथ अनगिन कहानियाँ, अनुभव और भावनाओं का समंदर लेकर आता है जिनको वह जब खत्म होता है, तो  बीते लम्हों की झलकियों  के साथ साथ आने वाले समय की ओर बढ़ने का हौसला भी दे जाता है। यह कविता एक भावपूर्ण विदाई है उस साल को, जिसने हमें कई सबक सिखाए, हमें हंसाया, रुलाया और हमारी यादों का हिस्सा बन गया।  

यह विदाई गीत एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जहां बीते पलों को अलविदा कहने के साथ-साथ हम भविष्य के स्वागत के लिए तैयार होते हैं। यह लेखन उस पल को समर्पित है, जहां हम ठहरकर पीछे मुड़कर देखते हैं और बीते समय को कृतज्ञता और प्रेम से विदा करते हैं।  

आइए, इस कविता ‘साल की विदेश’ के माध्यम से बीते साल को धन्यवाद कहें और नए साल की उम्मीदों और सपनों का स्वागत करें। 

।।साल की विदाई।।

खट्टे-मीठे अनुभव वाला,

मिला जुला यह साल रहा

सुख दु:ख दोनों साथ चले हैं,

उन्नत इसका भाल रहा।

 

आयेगा इक साल नया अब,

स्वागत उसका करते हैं

देकर विदाई इस साल को,

कदम नया अब धरते है।

नये जोश नई उमंगों से ,

ठोक यहां नर ताल रहा

खट्टे-मीठे अनुभव वाला,

मिला जुला यह साल रहा।

 

बीत गया मत याद करो तुम,

बड़े प्रेम से विदा करो

दुख के क्षण को भूलो अब तो,

मत आंखों में अश्रु भरो।

मानव है मानव का दुश्मन,

खींच रहा ये खाल रहा

खट्टे-मीठे अनुभव वाला,

मिला जुला ये साल रहा।

 

संग समय के चले सभी तो,

अपना ये हो जाता हैं

प्यारी लगती है दुनिया ये,

सुख मन में फिर छाता है।

पर ये मानव तो सदा यहां,

इक चोर दिलों में पाल रहा

खट्टे-मीठे अनुभव वाला,

मिला जुला यह साल रहा।

 

समय हमें बतलाता राहें,

लेकिन हम चुपचाप रहे

उल्टे सीधे धंधे करके,

नोट यहां बस छाप रहे।

अपनी अपनी सेंके रोटी,

गला रहा नर दाल रहा

खट्टे-मीठे अनुभव वाला,

मिला जुला यह साल रहा।

 

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक

मालपुरा

टोंक (राजस्थान)