ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर

क्षणिकाएँ

ऑपरेशन सिंदूर

सरहद की साँसों में सिंदूर बसा था

माँ की माँग सा लाल, वीरों का निशाँ।

एक झंडा था, उम्मीदों से भारी,

झुका नहीं —

क्योंकि सिन्दूर था हमारी जंग की तैयारी।

 

सिन्दूर चुपके से हर सैनिक के संग रहा था

सिन्दूर की महिमा का वह रूप

आज नभ थल सागर से गूँजा था

जो देश की ललकार बन गया ।

 

सिन्दूर सिर्फ माँग का रंग नहीं

वो तो कसम थी–

माटी पर मर मिटने की

धूल पर गिरा वह रक्त नहीं

एक लाल चिह्न था-

जिसे दुनिया “जय हिंद ”

करती है ।

रचयिता

डॉo छाया शर्मा, अजमेर, राजस्थान

प्रस्तुति