पर उपदेश कुशल बहुतेरे
उपदेश दूसरों को देते जगह जगह ही मिल जाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।
दहेज की उत्पीड़न गाथा नित-नित ही छपती देखी है।
लेकिन महा कुरीति ये तो नहीं कभी मिटती देखी है।
जो दहेज लेता है उसको मन में सभी बुरा कहते हैं।
लेकिन जब खुद अवसर पाया दिखे सदा वो चुप रहते हैं।
दहेज देखकर उनके देखा शब्द स्वयं ही खो जाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।।१।।
कुछ कहते मैंने नहीं माँगा स्वयं यह धन सम्मुख आया।
उस धन को न लेना उसने धन का ही अपमान बताया।
कुछ कहते पैसा नहीं लूंगा और चाहे कुछ भी दे दो।
पर जो भी देना हो उसकी हमसे सहमति पहले ले लो।
बिटिया क्या खाली भेजोगे ताना देते वो पाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।।२।।
विवाह जैसे समारोह में खाने का अम्बार दिखा है।
खाने की तुलना करता वहां एक दूजे का यार मिला है।
पिता स्वयं को गिरवी रखकर चुप रह कर सब कुछ सहता है।
बेटी को कोई कष्ट न होवे हर पल शंकित सा रहता है।
फिर भी कितनी महिलाओं को रोज-रोज जलते पाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।।३।।
दहेज स्वयं देने वाले की तो पाई दिखती मजबूरी।
पर दहेज लेने वाले को इतना क्यों है आज जरूरी।
दहेज नहीं लेना है जब भी भाव हिय में जग़ जायेंगे।
दहेजी उत्पीड़न तब ही भारत भू से भग जायेंगे।
जो दहेज नहीं लेते वे ही आदर्शी जन कहलाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।।४।।
संत महात्मा कथाकार सब देते हैं उपदेश मनोहर।
मोह माया से दूर रहो सब कहते ध्यान करो न पल भर।
पर बिन माया कथाकार के मधुर वचन नहीं बाहर आते।
सबके ही तो रेट बंधे हैं कम पर कहां उन्हें सुन पाते।
ठाठ बाट महंगी कारों में हमको सदा नजर आते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं।।५।।
भ्रष्टाचार पर अच्छे भाषण देकर नेता मुस्काता है।
पर इसके ही बल पर देखो कोठी बंगले बनवाता है।
कथनी करनी में ये अन्तर हमको रोज नजर आता है।
‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ वाक्य सार्थक ही पाता है।
झूठी कसमें झूठे वादे करते तनिक न थक पाते हैं।
उनके सुन्दर वचनों को सुन श्रोता के मुख खिल जाते हैं॥६।।
रचनाकार
कृष्णदत्त शर्मा ‘कृष्ण’
प्रस्तुति