कमी ही बन गई ताकत

कमी ही बन गई ताकत

भूमिका

प्रेरणा-पत्र है यह

शेखर की निम्नवर्णित कहानी हमें यह सिखाती है कि असली ताकत शरीर नहीं, अपितु आत्मविश्वास और संकल्प है। महज तीन फीट की ऊंचाई होने के बावजूद शेखर ने अपने सपनों को कभी छोटा नहीं होने दिया। समाज के तानों को चुनौती में बदलकर उन्होंने खुद को साबित किया और आज वह पैरा एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक विजेता हैं।

उनका संघर्ष, मेहनत और जुनून हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो खुद को किसी कमी के कारण पीछे समझता है। शेखर की यात्रा दिखाती है कि जब इरादे बुलंद हों, तो कोई भी कमी जीत की राह में बाधा नहीं बन सकती।

यह विवरण मूलतः एक संदेश है कि अगर शेखर कर सकता है, तो हम भी कर सकते हैं।

विवरण

आभार संवाद एजेंसी

मेरठ: जो कमी थी, वही ताकत बन गई — पैरा खिलाड़ी शेखर गुर्जर की प्रेरणादायक कहानी

अपने भीतर की कमियों को ताकत में बदलने की मिसाल बन चुके हैं मेरठ के 22 वर्षीय पैरा एथलीट शेखर सिंह। महज तीन फीट की लंबाई होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने सपनों को छोटा नहीं होने दिया। आज वह न सिर्फ ऊंचाइयों को छूने की तमन्ना रखते हैं, बल्कि उन्हें पाने के लिए पूरी लगन से मेहनत भी कर रहे हैं।

कैलाश प्रकाश स्पोर्ट्स स्टेडियम में शेखर रोज़ शॉटपुट और जेवलिन थ्रो की कड़ी ट्रेनिंग लेते हैं। उनका सपना है कि वे भी एक दिन नवदीप की तरह पैरालंपिक में देश के लिए पदक जीतें।

हौसलों की उड़ान के साथ मिली पहचान

लंबाई की कमी के कारण शेखर को बचपन से ही लोगों के ताने और मज़ाक का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने नकारात्मक टिप्पणियों को चुनौती के रूप में लिया और कुछ ऐसा कर दिखाने की ठानी कि वही लोग आज तालियां बजाते नहीं थकते।

तीन फीट के इस जज़्बे के धनी खिलाड़ी ने राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में शॉटपुट और भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतकर खुद को साबित किया है। अब उनका अगला लक्ष्य है पैरा ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर गौरव लाना।

कोच के मार्गदर्शन में कर रहे तैयारी

शेखर को मार्गदर्शन मिल रहा है अनुभवी कोच गौरव त्यागी का, जिन्होंने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर की तैयारी के लिए प्रेरित किया। मेरठ से पहले भी कई पैरा खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं। इन्हीं में से एक हैं प्रीतिपाल, जिन्होंने पिछले वर्ष पैरा ओलंपिक में 100 और 200 मीटर दौड़ में दो कांस्य पदक जीते थे। शेखर भी उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलने का सपना संजोए हुए हैं।

पांच घंटे नियमित परिश्रम

हापुड़ जिले के बहादुरपुर गांव के निवासी शेखर के पिता जयप्रकाश भारतीय सेना में कार्यरत हैं और मां सुमन देवी गृहिणी हैं। शेखर बताते हैं कि जब उन्होंने पहली बार टीवी पर पैरालंपिक खिलाड़ियों को खेलते देखा, तभी से उन्हें भी खिलाड़ी बनने की प्रेरणा मिली।

अब वह हर दिन पांच घंटे कैलाश प्रकाश स्टेडियम में अभ्यास करते हैं। हाल ही में बरेली में आयोजित राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में उन्होंने मेरठ मंडल के लिए स्वर्ण पदक जीतकर सभी का ध्यान खींचा।

‘पदक जरूर लाएगा देश के लिए’: कोच की उम्मीद

कोच गौरव त्यागी का कहना है, _“शेखर जिस तरह से मेहनत कर रहा है, वह दिन दूर नहीं जब वह देश के लिए भी खेलेगा और पदक लेकर लौटेगा। उसकी लगन, अनुशासन और आत्मविश्वास निश्चित रूप से उसे ऊंचाई तक पहुंचाएंगे।”

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