एक पवित्र प्रयास जो विस्मृत हो गया
हम जब भी डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम लेते हैं, तो हमारे मन में एक महान विचारक, संविधान निर्माता और समाज सुधारक की छवि उभरती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘अंबेडकर’ नाम भीमराव को स्वयं जन्म से नहीं मिला था। उन्हें यह नाम देने वाले एक ऐसे शिक्षक थे, जिनका समर्पण, दूर-दृष्टि और मानवीयता अपने आप में मिसाल है—वे थे कृष्णाजी केशव अंबेडकर।
कृष्णाजी केशव अंबेडकर एक सामान्य अध्यापक थे, लेकिन उनके भीतर असामान्य संवेदनशीलता और सामाजिक न्याय के लिए गहरी प्रतिबद्धता थी। जब उन्होंने भीमराव रामजी सकपाल को एक होनहार लेकिन सामाजिक रूप से वंचित विद्यार्थी के रूप में देखा, तो उन्होंने न सिर्फ उसे पढ़ाया-लिखाया, बल्कि उसे अपना नाम—’अंबेडकर’—भी दे दिया, ताकि वह समाज में सम्मानपूर्वक पहचान बना सके। यह केवल नाम नहीं था, यह एक पहचान, एक शक्ति और एक विश्वास था जो आगे चलकर भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया।
लेकिन उनका योगदान केवल यहीं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने बड़ौदा के महाराजा गायकवाड़ से व्यक्तिगत रूप से सिफारिश करके भीमराव अंबेडकर को विदेश जाकर अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति दिलवाई। यह वह समय था जब दलित समाज के लिए शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा था, और विदेश जाकर पढ़ाई करना तो लगभग असंभव! परंतु कृष्णाजी केशव अंबेडकर के विश्वास और प्रयासों ने यह असंभव भी संभव बना दिया।
आज जब हम डॉ. अंबेडकर को याद करते हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम उन अनदेखे नायकों को भी जानें और मानें, जिन्होंने उनके निर्माण में आधारशिला का कार्य किया। कृष्णाजी केशव अंबेडकर न सिर्फ एक गुरु थे, वे एक विचार थे—एक ऐसी लौ, जिसने एक दीपक को जलाया, और वह दीपक आज भी करोड़ों लोगों के जीवन को रौशन कर रहा है।
नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
कृष्णाजी केशव अंबेडकर हमें यह सिखाते हैं कि महानता सिर्फ मंचों पर भाषण देने या सत्ता में रहने से नहीं आती, बल्कि किसी एक व्यक्ति के जीवन में सच्चा बदलाव लाने से आती है। अगर आप किसी को उसका आत्मसम्मान लौटा दें, उसकी प्रतिभा को पहचान कर उसे उड़ान दे दें, तो आप भी किसी युगपुरुष के निर्माण में भागीदार हो सकते हैं।
आज जरूरत है ऐसे गुरुओं, मार्गदर्शकों और समाजसेवियों की, जो बिना प्रसिद्धि की चाह के, केवल मानवता और प्रतिभा के लिए काम करें—जैसे कभी एक ‘भुला दिया गया अंबेडकर’ कृष्णाजी केशव अंबेडकर ने किया था।
आइडिया
श्री भगवानदास मंजीत जी
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