धारावाहिकों में अनियमितता

धारावाहिकों में अनियमितता

यह चिंता बिल्कुल वाजिब है कि एक आम दर्शक की भावना को दरकिनार कर धारावाहिकों में कमजोर कथानकों की मात्रा बढ़ती जा रही है। वास्तव में, भारतीय मनोरंजन उद्योग में कई सीरियल्स सिर्फ टी.आर.पी. बढ़ाने या समय खींचने के लिए बनाए जाते हैं, जिनमें कहानी, निर्देशन और अभिनय की गुणवत्ता की कमी होती है।

‘भाकरवाड़ी’ एक ऐसा शो था जिसमें मनोरंजन के साथ-साथ समाज के लिए गहरे संदेश भी होते थे। उसकी पटकथा, संवाद और किरदार इतने प्रभावशाली थे कि हर एपिसोड देखने लायक होता था। दर्शकों को हँसी के साथ सोचने पर मजबूर करने वाला ऐसा संतुलन बहुत कम देखने को मिलता है।

वहीं, ‘मंगल लक्ष्मी’ जैसे कई सीरियल्स में कंटेंट की कमी होती है। जब एपिसोड को दो हिस्सों में बाँटा जाता है और हर भाग को खींच-तान कर दिखाया जाता है, तो कहानी नीरस हो जाती है। दर्शक जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते और बोरियत हावी हो जाती है।

फिर भी, ऐसे शो टेलीविजन पर टिके रहते हैं क्योंकि कुछ दर्शक वर्ग आदतवश या सामाजिक कारणों से इन्हें देखना जारी रखते हैं। इसके अलावा, प्रोडक्शन हाउस कभी-कभी सिर्फ लंबी अवधि की सीरीज बनाने पर जोर देते हैं, भले ही कंटेंट कमजोर हो।

लोगों को आनंद तभी आता है जब कहानी में गहराई, निर्देशन में दृष्टि और किरदारों में जीवन हो। जब तक निर्माता और निर्देशक दर्शकों की बुद्धिमत्ता का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक ऐसे बेमनोरंजक धारावाहिकों की संख्या बढ़ती रहेगी।

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