💖दोहे ( मजदूर दिवस ●●● )💖
सरदी-गरमी सहन करे, करता नहीं आराम।
भरे पेट परिवार का, भोर भये तक शाम।।१।।
भूखा-प्यासा कमर कसि, काम करे मगरूर।
सुख-चैन कोसों खड़े, मस्त रहै मजदूर।।२।।
दो जून की रोटी हित, करते कई जुगाड़।
कोड़ी कोड़ी जोड़कर, भविष्य करे प्रगाढ़।।३।।
मगन होकर काम करे, चाहै हो मजबूर।
परवाह करे ना कभी, सहज रहै मजदूर।।४।।
खून-पसीना सींचकर, धरा होय आबाद।
महलों की रंगत बढ़े, बाद एक के बाद।।५।।
हुलसे-हुलसे काज करे, मन में है विश्वास।
घर चलाने की जुगत, पूरी होगी आस।।६।।
टप-टप टपके गात से, अमृत-रस बरसाय।
धरा सरसती जा रही, धान लहरता आय।।७।।
अंकुर मेहनत के फले, धानी चूंदड़ औढ़।
सन-सनाती हवा चले, हँसता औढ़े सौढ़।।८।।
मन में निश्चय धारता, बड़ा न कोई काम।
सरपट करता साधना, तभी करे आराम।।९।।
करता पूजा काम की, यह उसका भगवान।
दम्भ भरे संपूर्णता, करता है आह्वान।।१०।।
रचयिता
‘नायक’ बाबूलाल नायक
सार छंद
।। मजदूर।।
मेहनत के पुजारी हम सब, मजदूर कहाते हैं।
दिन भर सारे काम करें हम, तब रोटी पाते हैं।
अपने खून पसीने से ही, इस दुनिया को सींचा
बिठा प्रेम से लोगों को रिक्शा, था हाथों से खींचा।
दो पैसे पाने के खातिर, धूल से नहाते हैं
मेहनत के पुजारी हम सब, मजदूर कहाते हैं।
झोपड़ पट्टी बना सभी हम, सभी उसी में रहते
सर्दी गर्मी बारिश सारी, यही सभी मिल सहते।
मंदिर मस्जिद महल अटारी, रोज ही बनाते हैं
मेहनत के पुजारी हम सब, मजदूर कहाते हैं।
हम ही हैं आधार जमीं के, नींव हमीं को जानो
हम भी हैं भाई तुम्हारे, जरा हमें पहचानो।
पेड़ लगाकर खूब जमीं पर, हरियाली लाते हैं
मेहनत के पुजारी हम सब, मजदूर कहाते हैं।
बेगाने हुए आज हैं हम, हमसे दूर जमाना
मुश्किल है इस दुनिया में अब, खाना और कमाना।
मेहनत खूब करते फिर भी, दो रोटी पाते हैं
मेहनत के पुजारी हम सब, मजदूर कहाते हैं।
रचयिता
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा
तू भी मजदूर मैं भी मजदूर
राह पर्वत बनाई इसी हाथ से ।
मैंने वसुधा सजाई इसी हाथ से।।
सागरों को समेटा रखा ताक पर,
मैंने लो इक जलाई इसी हाथ से ।।
छेनी हाथों में लेकर चले हम डगर ।
मेरी हिम्मत के साखी खड़े हैं नगर ।।
मैंने दुनिया को जन्नत बनाकर दिया,
उड़ती-उड़ती मिलेगी कभी ये खबर ।।
एक मजदूर मजबूर होता बहुत ।
ख़ूब हंसता भले बाद रोता बहुत ।।
एक पत्थर को पारस बना कर दिया,
कुछ न पाया कभी सिर्फ़ खोता बहुत ।।
रचयिता
…dAyA vAisHnAv