महाकवि पण्डित ताराचन्द्र हारीत (सिवाया) स्मृति समारोह
अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं साहित्यकार सम्मान
मेरठ , 1 मेरठ मई। शिव मंदिर परिसर सिवाया में महाकवि पण्डित ताराचन्द्र हारीत की स्मृति में वृहद साहित्यिक समारोह आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वक्ता द्वारा महाकवि हारीत जी के हिन्दी साहित्य जगत में उनके योगदान पर प्रकाश डाला गया।
हारीत जी के जीवनकाल में प्रकाशित श्रेष्ठ महाकाव्य ‘दमयन्ती’, जिसे समालोचकों ने बीसवीं सदी के हिन्दी खड़ी बोली के नौ महाकाव्यों में से एक महाकाव्य माना है, की प्रशंसा की।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ समाजसेवी श्री अजय गुप्ता (श्रीवसु) ने ग्रामीण अंचल में इस साहित्यिक कार्यक्रम को श्रेष्ठ सांस्कृतिक कार्यक्रम बताया।
समारोह में अतिथिगण द्वारा महाकवि हारीत द्वारा 1943 में लिखी तथा अब प्रकाशित महाकाव्य ‘हारीत रघुवंश’ का लोकार्पण किया गया।
समारोह का शुभारंभ वरिष्ठ अधिवक्ता एवं शिक्षाविद् धर्मेंद्र शर्मा व अतिथिगण द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन, पुष्पार्पण व सुश्री तुषा शर्मा द्वारा प्रस्तुत वाणी वन्दना से हुआ।
समारोह की विशेषता यह रही कि महाकवि हारीत जी को श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ ही सभी अतिथिगण व ग्रामवासियों ने देश के महान राजनेता भूतपूर्व प्रधानमन्त्री चौ. चरणसिंह जी ( जिनका सिवाया ग्राम से विशेष जुडाव रहा) को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण कर उन के चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें अपने श्रद्धाजलि अर्पित की।
काव्य पाठ करते हुए इस अवसर पर आयोजित कवियों ने कहा।
बंध गया राखी का धागा आरती सजने लगी है।
युद्धस्थल में उधर रणभेरी-सी बजने लगी है।
रोकता है कौन चढ़ाने से हमारा पांव रथ में,
आगे बढ़ उसको हटाए जो खड़ा अवरोध पथ में।।
सत्यपाल ‘सत्यम‘, मेरठ
मैं रानी लक्ष्मीबाई के तेवर पर अभिमान करूँगी।
देशभक्त परिपाटी से हूँ देशभक्ति का मान करूँगी।
राह चुनी है भारतभूमि की, फूल मिलें या शूल मिलें,
भारत माता की बेटी हूँ भारत का गुणगान करूँगी।।
प्रीति अग्रवाल, मुजफ्फरनगर
हमारे देश पर संकट कहाँ अब प्यार लिक्खूंगा।
घड़ी ऐसी खड़ी है सामने सब सार लिक्खूंगा।
जहाँ चीत्कार क्रंदन है, भवानी की कसम मुझको,
वहाँ मैं क्रोध में हे लेखनी! अंगार लिक्खूंगा।।
सुमनेश ‘सुमन‘, मेरठ
हृदय की बांसुरी के सुर कहीं अब ज्वाल बन जाएँ।
उठी जो भावना मन में सभी विकराल बन जाएँ।
हमेशा अन्न जल खाया उसी भारत पे संकट है,
चलो भारत के बेटों आज हम सब काल बन जाएँ।।
मनोज कुमार ‘मनोज’
तू अगर कर सके तो मुहब्बत अटूट कर।
दुनिया के हरेक स्वार्थ के बन्धन से छूटकर।
ये किसके पाँव हैं जिन्हें छूने की चाह में,
शाखों से फूल आये हैं राहों में टूटकर।।
कवयित्री तुषा शर्मा, मेरठ
क्या क्या करते काम ना पूछो क्या होगा अंजाम ना पूछो।
पर्दे के पीछे क्या देखा, यह सब कुछ सरेआम ना पूछो।
बरी हुआ बाइज्जत खूनी, कितने लगे दाम ये न पूछो,
बेकसूर के सर पर कैसे सिद्ध हुआ इल्जाम ना पूछो।।
बलबीर सिंह ‘खिचड़ी‘, गाजियाबाद
अवसर के चित्र
सूचना स्रोत
श्री सुमनेश ‘सुमन’
प्रस्तुति