मुक्तक

मुक्तक

मुक्तक एक

बक्श दी जान फिर पाक सुन ले ज़रा।

छोड़ पथ आग का प्यार बुन ले ज़रा।

सामना गर हुआ अब कभी तो सुनो,

पाक का नाम मिटेगा ये गुन ले ज़रा।

मुक्तक दो

मां की गोद में जन्नत का नजारा है।

बड़े हुए मिला जब मां का सहारा है।

देखा है भगवान को उसकी सूरत में,

फिर भी मां क्यों हुई आज बेसहारा है।

रचयिता

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति