विधाता छंद
रही जो जान रिश्तों की, नहीं अब प्रीत वो मानो।
नई है रीत अब आई, गया ईमान सब जानो।
दिखे जी डूबती नैया, नहीं है मोल मानव का,
झुका इंसान दिखता है, बढ़ा कद आज दानव का।
बहाती आंख से आंसू, दिखे बाजार में माता।
पिता भी रोज सुनते हैं, बहू की रोज ही गाथा।
असर है ये जमाने का, निकाले काम कैसे भी,
अभी दिन देखने बाकी, नहीं जो देखे वैसे भी।
रचयिता
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’मालपुरा
चित्र उत्पत्ति
Canva AI
प्रस्तुति