वृतांत
एक सारस्वत यात्रा
‘मंदाकिनी मिहिका’ से पर्यावरण की ओर
आज का दिन साहित्यिक जीवन की एक अविस्मरणीय उपलब्धि के रूप में अंकित हो गया — जब मेरी दोहा सतसई ‘मंदाकिनी मिहिका’ का प्रकाशन जयपुर की सांस्कृतिक धरा पर साहित्यागार पुस्तक प्रकाशन अनुबन्ध पत्र सम्मानीय हिमांशु जी से प्राप्त हुआ। यह केवल एक पुस्तक का प्रकाशन नहीं था, बल्कि उन कोमल अनुभूतियों, मद्धम बूँदों और भावों की श्रृंखला का उत्सव था, जो मेरे हृदय से उपजी और शब्दों में ढलकर आप तक पहुँचेंगी।
‘मंदाकिनी मिहिका’— एक यात्रा है ओस की बूँदों, चाँदनी की शीतलता और अंतर्मन की पारदर्शिता की। हर दोहे में बहती है एक नर्म सी सरिता, जो पाठकों के हृदय में उतरकर शांति का संचार करती है।
इस प्रकाशन ने मुझे अगली दिशा में प्रेरित किया है — “पर्यावरण संरक्षण” की ओर। अब मेरी आगामी पुस्तक प्रकृति को समर्पित होगी — जिसमें बच्चे, शिक्षक और समाज सभी के लिए भावनात्मक, शिक्षाप्रद और सरस शैली में प्रकृति के अनमोल तत्वों की कथा बुनी जाएगी। यह नयी कृति होगी धरती माँ, जल, वायु, ध्वनि और हरियाली की पुकार को स्वर देने का प्रयास।
मैं कृतज्ञ हूँ उन सभी साहित्यकारों शुभचिंतकों, और सृजनशील आत्माओं की, जिन्होंने मेरे शब्दों को स्नेह और सराहना दी।
यह तो बस एक शुरुआत है…
“अभी शब्दों को बहना है, धरा को हरियाना है,
और! भावों को नवजीवन देना है।”
सूचना स्रोत
डॉ छाया शर्मा
प्रस्तुति