अपनी अपनी राह – मुकेश कुमावत एवं  बाबूलाल नायक

अपनी अपनी राह – मुकेश कुमावत एवं बाबूलाल नायक

अपनी-अपनी राह

(31-05-2025)

विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर

जर्दा गुटखा पान मसाला खाने से,

तेरे मुॅंह की शान चली जाती है,

बीड़ी ,सिगरेट,तम्बाकू पीने से,

खुद की मर्यादा भी छली जाती है।।

 

इन दुर्व्यसनों के उपयोग से,

माॅं-बाप तो नाराज होते ही हैं,

पर घर आई धनलक्ष्मी ओर,

धर्मपत्नी भी मायके चली जाती है।।

 

दिन भर मेहनत,मजदूरी करता,

शाम होते ही कमाई चली जाती है,

अपने फेंफड़े तो खराब करता ही है,

उसके साथ तन की ताकत चली जाती है।।

 

इसलिए जाग मानव,यह मीठा जहर है,

इससे तन में बीमारियाॅं फैली जाती है,

मानव जैसी कुन्दन काया भी,

तम्बाकू सेवन से मैली हो जाती है।।

रचयिता

मुकेश कुमावत ‘मंगल’

टोंक

नशा मुक्ति दिवस

(चौपाइयाॅं)

चरस अफीम गुटका बराबर/

भंग धतुरा गटके सरासर//

काम खूब गड़बड़ बिगड़ाना/

अखियाँ टिमटिम करते जाना//१//

 

महा पीड़ा विकट बहुरंगी/

सुमति बिगाड़ कुमति के संगी//

कंचन बदन बिगाड़ हमेशा/

काम-वासना का संदेशा//२//

 

हाथ-पाँव औ मुँह पिचकावै/

काम-काज कभी नहीं भावै//

मात-पिता सबको दुख मंडन/

चीख पुकार महा मन खंजन//३//

 

विपदा खड़ी करे घर बाहर/

घूँट-घूँट पी करे उजागर//

लत पड़ जाए बहुत पुरानी/

मानव जीवन खतरा जानी//४//

 

तन चरित्र बिगाड़ दे रसिया/

द्यूत क्रीड़ा ही मन बसिया//

गुटका मुँह में सदा दबावै/

बार-बार हि थूँकता जावै//५//

 

मुँह से बदबू बहुत सड़ीली/

आँखे रहती बनी नशीली//

घुट-घुट कर ही जीते जाते/

जीवन सारा नरक बनाते//६//

 

जासै रोग बढ़े हर बारा/

खपत शरीर निरन्तर सारा//

संकट से कोई न बचावै/

हाय-हाय करते मर जावै//७//

 

युग-युग से जन-जन पर भारी/

नशा नाश करता है जारी//

जो शत जूत मारता कोई/

आप हि दूर भागता होई//८//

 

जो यह नियम रखै हर बारा/

मिले नशे से तब छुटकारा//

खुशियां दूर करै सब भारी/

पाय आपदा विकट नकारी//९//

 

मन विचलित कर देय तमाशा/

पूरी होत नहीं अभिलाषा//

जन-जन देते हैं फटकारा/

लत लगे ना मिले छुटकारा//१०//

 

जीवन सारा नरक बन जाता/

घुट-घुट कर मरना हो जाता//

नित उठकर ठेके पर जाता/

मार कूट पत्नी से करता//११//

 

जीना सबका दूभर कर दे/

हाहाकार मचा घर भर दे//

नींद उड़ा दे आस-पास की/

कोतूहल बन जाता सनकी//१२//

 

“नायक” दास बने ना कोई/

सदा सुखी रहते जन सोई//

हाहाकार करें ना जग में/

रखें संतुष्टि अपने मन में//१३//

दोहा

कर तरह-तरह का नशा,

जीवन बिगड़ा जाय/

नशा निमंत्रण नाश का,

जन-जन को सयझाय//

स्वरचित

💥”नायक” बाबू लाल नायक💥

टोंक,(राज.)

प्रस्तुति