सार छंद

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सार छंद

मेरे पापा

ईश्वर के सम मेरे पापा,

हर दु:ख में मुस्काएँ ।

संघर्षों के बीच सदा ही,

सबको राह दिखाएँ ।।

पैरों पर है खडा किया अब,

हर पल साथ निभाया ।

सत्य पथों की दीप शिखा बन,

वरद-हस्त की छाया।।

 

आकाशों से ऊँचा मन है,

सागर सी गहराई।

पिता नहीं सिर पर छत हैं वो,

जब भी मैं घबराई।।

थककर बैठी जब जीवन में,

साहस वही दिलाएँ ।

बिन बोले ही हर अश्रु को,

हँसकर वही छिपाएँ ।।

 

मेरे पंखों की उड़ान को,

पंख पिताजी देते ।

संघर्षों की लहरों पर वह,

मेरी नैया खेते ।।

मौन प्रेम की भाषा बनकर,

हर पीड़ा हर जाएँ ।

बेटी को संसार दिखाए,

कवच बने अड जाएँ ।।

 

शब्द नहीं बस पापा मेरे,

जीवन की परिभाषा ।

पापा के आनन पर अब,

मुस्कान बनी अभिलाषा ।।

हर पूजा के दीपक जैसे,

मेरे पापा प्यारे ।

सारे जग में पापा से है,

रंग खुशी के न्यारे ।।

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रचनाकार

रचयिता

—डॉo छाया शर्मा, अजमेर, राजस्थान

प्रस्तुति