।।अपनी-अपनी राह।।
कड़वी सच्चाई
वाह रे! मेरे हिन्दुस्तान,वाह रे! मेरे भारत,
यहाँ के लोगों ने क्या खूब हासिल की महारथ,
योग दिवस पर योगा-योगासन को भजते हैं,
पितृ दिवस पर पिता के साथ स्टेटस, स्टोरियाँ रचते हैं।।
पर वास्तविकता आपने,हमने,सबने देखी है,
यह सिर्फ दिखावा, वाहवाही और देखा-देखी है।
यदि नियमित दिनचर्या में पर्व उत्सवों को मनाते,
तो काया निरोगी, तन सुखी, जीवन प्रेमपूर्वक चलाते।।
यथार्थ मानो, मोबाइल की स्टोरी, स्टेटस,तक सिमट गया,
पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में, भाईचारा निपट गया।
देश-विदेश में भारत के आदर्शों को शान से अपनाते हैं,
भारत में अपने लोग ही अपने आदर्शों को निपटाते हैं।।
किताबें पढ़ना, इतिहास की बातें सुनना छोड़ दिया, लाइक, फोलोअर्स, सब्सक्राइब बढ़ाने की होड़ किया।
भाई ने भाई से पड़ोसी ने पड़ोसी से नाता तोड़ दिया,
अपने हाथ, दिमाग को मोबाइल व पैसे से जोड़ लिया।।
मानव खुद ही अंहकार और अकड़ में रहता है,
तभी तो बिना काल मृत्यु के भी वह मरता है।
सुन मानव धरती पर आने के उद्देश्य को जान,
ईश्वर की सत्ता और खुद की गरिमा को पहचान।।
रचनाकार
मुकेश कुमावत ‘मंगल’
टोंक राजस्थान
मुक्तक एक
देखो सब अपनी डफ़ली,अपना-अपना राग अलापते हैं,
अपनी ही अपनी सफलता का जाप जापते हैं,
पता नहीं लोगों को क्या हो गया, पर हित को छोड़कर,
खुद ही खुद अपने पद, ज्ञान, श्रेष्ठता को मापते हैं।।
मुक्तक दो (पापा)
पापा,अपने बेटों के लिए अमूल्य खजाने हैं,
पापा, हमारी माँ के लिए सटीक पैमाने हैं,
पापा को हम सच में समझकर देखें तो,
वे गमों को भुलाकर,पूरे परिवार के दीवाने हैं।।
मुकेश कुमावत मंगल
टोंक।
प्रस्तुति