कुंडलिया छंद एक
आता जाता ही फिरें ,जीव जगत के माहि,
करार अपनी भूलता,याद रखें कुछ नाहि।
याद रखें कुछ नाहि,मग्न दुनिया में होता,
देख सामने मौत,पकड़ सिर को फिर रोता।
कह सेवक कविराय, ईश्वर से जोड़ो नाता,
करके कोल करार,जीव दुनिया में आता।
कुंडलिया छंद दो
आते सावन मास में, बाबा भोलेनाथ,
डमरू लेकर हाथ में, पारां जी के साथ।
पारां जी के साथ, चले भूतों का टोला,
सजे गले में नाग, पहन भस्मी का चोला।
कह सेवक कविराय, जगत के हैं ये दाता,
पाता है वरदान, पास जो इनके आता।
कुंडलिया छंद तीन
आशा रखना राम से, दुनिया से दो छोड़,
भला करेंगे राम जी, मन को उनसे जोड़।
मन को उनसे जोड़, काम निर्भय रह करना,
मान उसी का साथ, कदम आगे को धरना।
कह सेवक कविराय, दु:ख है जग में कासा,
रोज जपो हरि नाम, रखो उससे ही आशा।
बाल देशभक्ति गीत
दे मुझको बंदूक हाथ में, मैं सीमा पर जाऊंगा,
ले टक्कर दुश्मन से मैं तो, उसको दूर भगाऊंगा।
फौजी की वर्दी पहनूं मैं, सपना है मेरा प्यारा,
देश धर्म पर बलि बलि जाऊं, काम करूं सबसे न्यारा।
दूर हटाकर कांटे पथ से, फूलों से उसे सजाऊंगा,
दे मुझको बंदूक हाथ में, मैं सीमा पर जाऊंगा।
देश वही भारत है मेरा, जन्म लिया जिस पर वीरों ने,
भगतसिंह सुभाष प्रताप सब, सांगा से रण धीरों ने।
लेकर मैं तलवार साथ में, कौशल नया दिखाऊंगा,
दे मुझको बंदूक हाथ में, मैं सीमा पर जाऊंगा।
समझ मुझे तुम छोटा बालक, मत मुझसे टकरा जाना,
बलशाली हूँ भुजा देख लो, ताजा खाता हूँ खाना।
भारत का वासी हूं मैं भी, नाम यहां कर पाऊंगा,
दे मुझको बंदूक हाथ में, मैं सीमा पर जाऊंगा।
रचयिता
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा, टोंक (राजस्थान)
चित्र सृजन
चैट जीपीटी
प्रस्तुति