दोहे
मित्रता🌹🌹😄😄
मित्रता से ही जगत में, अब तक कायम प्यार।
रिश्ते प्यारे बढ़ रहे, अपनेपन को धार।।
सदा बढ़ाओ दोस्ती, जात पात सब त्याग।
धो डालो मन में जमे, नफ़रत जैसे दाग।।
दीन सुदामा बन गये, कृष्ण के जब मीत।
नैनन जल से पांव धो, खूब निभाई रीत।।
मित्रता को समझो दवा, रिश्तों की तुम डोर।
सरल सुगम होगा तभी, सुख दु:ख का ये दौर।।
आल्हा छंद
बादल देखो आसमान में, घिर आये हैं चारों ओर,
होगी अब बरसात धरा पर, नाचेगा मन बनकर मोर।
सूखी धरती हरियाती है, जब जब होती है बरसात,
बहने लगती नदियाँ कल-कल, भर जाते हैं सारे ताल।
कहीं कहीं तो रौद्र रूप ले, करती हैं बहुत ज्यादा शोर,
बादल देखो आसमान में, घिर आये हैं चारों ओर।
पेड़ लगे हैं नाच दिखाने, हवा चली जब ठंडी धार,
दादुर सब मिल गाने लगते, अपने मन के फिर उदगार।
पेड़ लगायें हम भी आओ, आया है बारिश का दौर,
बादल देखो आसमान में, घिर आये हैं चारों ओर।
नव कविता
।।नव ज्ञान।।
बाबाओं का ज्ञान
बँट रहा है चारों ओर
ले लो चाहने वालों
वर्ना रह जाओगे अंजान।
बिना गुरु के ज्ञान
मिलता नहीं मानो,
पहले बनाओ गुरु
किसी एक को
किसी पहुँचे हुए
बाबाओं में से
जो निकट हो भगवान के
जो बताता हो
भूत-भविष्य
जो काटता हो
पापों को जड़ से
औ अपनी अमृत वाणी से।
वैसे तो बहुत मिल जायेंगे
अखाड़े वाले,नागा,
अघोरी, महंत,
तपे तपाये संत,
योगी, भोगी,
रामस्नेही, कथावाचक ,
औलिया, फकीर, मनचाहे।
मत भटको इधर-उधर
मन को कर लो स्थिर,
सुन लो ज्ञान, देकर दान
नश्वर है यह जीवन,
मौका मिलेगा नहीं फिर।
आल्हा छंद
।। प्यार।।
करना इस जीवन में प्यारे, अपने हाथों अच्छे काम,
पूरी दुनिया को ही समझो, परमपिता का प्यारा धाम।
आसमान में तारे देखो, चमक रहे हैं चारों ओर,
सुबह रोज जब सूरज निकले, तब होती है जग में भोर।
खास किसी का मत बन जाना, रहना बनकर बिल्कुल आम,
करना इस जीवन में प्यारे, अपने हाथों अच्छे काम।
चंदा जैसे करे चाँदनी, वैसे ही फैलाओ प्यार,
बोली से रस घोलो जग में, कड़वाहट पर करो विचार।
चार दिनों का है ये जीवन, फिर होगी इसकी भी शाम,
करना इस जीवन में प्यारे, अपने हाथों अच्छे काम।
देखो सबको एक नजर से, नफ़रत का करके तुम त्याग,
इससे ही बढ़ता है जग में, सच्चा सब में ही अनुराग।
काम-क्रोध-मद-लोभ सभी का, अच्छा नहीं यहाँ अंजाम,
करना इस जीवन में प्यारे, अपने हाथों अच्छे काम।
जगत दिखावे के खातिर तुम, बदल न लेना अपना भेस,
फल मिलता है इसी जन्म में, कुछ भी ना रहता है शेष।
पुनर्जन्म की आस करो तो,भज लेना ईश्वर का नाम
करना इस जीवन में प्यारे, अपने हाथों अच्छे काम।
आल्हा छंद
जब जब दुश्मन ने सीमा पर, आँख दिखाई दे ललकार,
तब तब भारत के वीरों ने, महादेव का रूप लिया था धार।
दस दस पर भारी था यारो, भारत का बस एक जवान,
इसीलिए सब कहते हैं जी, भारत है वीरों की खान।
किया खात्मा दुश्मन का फिर, भारत की करते जयकार,
जब जब दुश्मन ने सीमा पर, आँख दिखाई दे ललकार।
धूल चटाई दुश्मन को है, जा उनकी सीमा के पार,
छोड़े थे तब जाकर उनको, जब मानी थी अपनी हार।
अगर करेगा दुश्मन गलती, वीर हमारे हैं तैयार,
जब जब दुश्मन ने सीमा पर, आँख दिखाई दे ललकार।
सार छंद
साथ समय के ढलता जीवन, बात हमारी मानो,
तन का होता अंत सदा ही, इस सच को पहचानो।
रावण ने अभिमान किया था,वर शिव जी से पाकर
तोड़ा वह अभिमान राम ने,लंका में ही जाकर।
नियम अटल है जग के सारे, इन सबको तुम जानो
साथ समय के ढलता जीवन, बात हमारी मानो।
अजर अमर है नाम यहां बस,जो दुनिया में पाया
कर्म रहेंगे साथ हमारे,मिट जायेगी काया।
अच्छे कर्म करेंगे सारे,ऐसा मन में ठानो
साथ समय के ढलता जीवन, बात हमारी मानो।
बाल गीत
।।राखी का त्योहार।।
सावन में आता है प्यारा,राखी का त्योंहार
बढ़ता जिससे दुनिया भर में,प्यारे सच्चा प्यार।
बहन बांधती है भाई के,राखी की जब डोर
खुशियों से भर जाता है घर,मन बन जाता मोर।
राखी के बदले में बहना,लेती है उपहार
सावन में आता है प्यारा, राखी का त्योंहार।
रंग बिरंगी राखी सजती,भैया तेरे हाथ
आता जब सावन का महिना, हरियाली के साथ।
बादल आकर बारिश करते,बहती है जल धार
सावन में आता है प्यारा, राखी का त्योंहार।
पापा की जो बहने सारी,घर आई है आज
जोड़ी देख बहन भाई की,हुआ हमें है नाज।
सज-धज कर आई है सारी,कर सोलह श्रृंगार
सावन में आता है प्यारा, राखी का त्योंहार।
काले काले बादल नभ मे, घूम रहे चहुं ओर
रिमझिम रिमझिम वर्षा कर ये, करते हैं बहुत शोर।
सदा प्रेम से रहना सीखो,जीवन है दिन चार
सावन में आता है प्यारा,राखी का त्योंहार।
सार छंद
होनी तो होगी दुनिया में, अनहोनी को टालो,
सोच-समझकर चलो सड़क पर, जीवन अच्छा पालो।
वाहन चलाओ दुपहिया तो, हेलमेट अपनाओ,
सीट-बेल्ट लगाकर बाहर, चौपहिया से जाओ।
जान बचेगी तो पायेंगे, ढेरों माल खजाना,
इस जीवन में होगा फिर ही, रिश्ते नये सजाना।
रियल लाइफ जीना सीखो, रील बनाना छोड़ो,
झूठ बोलना बंद करो अब, सत से नाता जोड़ो।
पढ़ो लिखो विद्वान बनो तुम, सीखो जीवन जीना,
संघर्षों से लड़ना सीखो, गम को हँसकर पीना।
दुर्घटना से बचो सदा तुम,प्यार भरो सीने में,
देखो फिर आयेगा तुमको,मजा यहां जीने में।
अभी हाथ में जो जीवन है, लौट नहीं आयेगा,
करो काम सब सोच-समझकर , फिर पछतायेगा।
दुर्घटना से देर भली है, सज्जन जन ये कहते,
कहने वाले चौराहों पर, खड़े सदा ही रहते।
कुंडलिया छंद
आई ऋतु बरसात की,भरे सभी है कूप
बारिश से इस भूमि का,निखरा कितना रूप।
निखरा कितना रूप, यहाॅं पर बहते झरने
घन आये बन मीत,दु:ख धरती का हरने।
कह सेवक कविराय,खूब हरियाली छाई
हरे हुए सब पेड़, बरसात की ऋतु आई।
सार छंद
शिव जी आये है धरती पर, कहता सावन प्यारा,
दर्शन कर लो गंगा की हैं, लाये पावन धारा।
बाबा ये भोले भंडारी, भंडारे है भरते,
मनोकामना पूरी कर ये, दुखड़े सबके हरते।
गूंज रहा बम बम की ध्वनि से, जग ये देखो सारा,
शिवजी आये हैं धरती पर, कहता सावन प्यारा।
बेल पत्र हैं इनको प्यारे, प्यारा भांग धतूरा,
जो जन इनको प्रसन्न करते, काम बने हैं पूरा।
देवों के भी महादेव का, रूप अनोखा न्यारा।
शिवजी आये हैं धरती पर, कहता सावन प्यारा।
रचनाकार
श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’
मालपुरा
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