ख़्वाब जो हकीकत सा लगता है
एक ख्वाब बुना था मैंने जो
वो आज हकीकत सा लगता है।
मेरी चाहत थी जीतूँ मैं
मैं जीत चुका हूँ लगता है।
कुछ साथ मेरे चलना चाहते
उनको मैं साथ रखना चाहता हूँ।
जो मुझे नहीं उठता देख सके
उस से मैं ख़ुद ही दूरियाँ रखता हूँ।
कोशिश में मेरे कमी नहीं है
तभी मैं जीत का फल चख पाता हूँ।
खंजर कोई जो आता मेरी राहों में
जोश से उसे तोड़ भगाता हूँ।
मेरे साथ कांरवा मेरे अपनों का
तभी तो मैं आगे को बढ़ता हूँ।
राहों के तूफानों से लड़ता हूँ
और जोश से आगे बढ़ता हूँ।
है जीत मेरी बाजुओं में
यही सोच हर सीढ़ी चढ़ता हूँ।
रचनाकार
माया शर्मा/लेखिका
प्रस्तुति