दयाशंकर शर्मा का मर्म

दयाशंकर शर्मा का मर्म

अंतर्मन

अपमानों से आहत ना मैं सम्मानों की चाह नहीं।
मेरी मस्ती मुझमें जिंदा दुनिया की परवाह नहीं।।
अपनी धुन में गाता हूँ मैं अपनी लय में नृत्य करूँ।
पद तल में अंगारे लेकिन अंतर्मन में आह नहीं।।

मर्म

शमशानों में जाकर स्वारथ देख रहे वो नेता हैं।
जनता की लाशों पर रोटी सेक रहे वो नेता हैं।।
कपट कलेवर धारण करके बगुले भगत बने फिरते।
छतें छीनकर ऊनी कंबल फेंक रहे वो नेता हैं ।।

रचनाकार
…dAyA shArmA

प्रस्तुति