श्योराज जी की कलमकारी

श्योराज जी की कलमकारी

मनहरण घनाक्षरी

गंगा की ललकार को, सुन नहीं पाया कोई।

छोड़ दे ये पथ मेरा, इसी में कल्याण है।

 

प्रकृति के आँचल में, जन्मी हूं मैं प्यारे।

इन पर्वतों के बीच, बसे मेरे प्राण हैं।

 

घायल किया मुझको‌, तुमने निज हाथों से,

रस्ता रोका शत्रु बन, छोड़े खूब बाण हैं।

 

स्वयं प्रकृति प्रकटी है अब तो मुझमें ही।

अब तक देख रहा, तू अपना त्राण है।

ग़ज़ल

तुम्हें शूल पथ से गर हटाना नहीं है,
उसी पथ पर फूल सजाना नहीं है।

सुनो बहुत आसान है जिंदगी ये,
उसे लेकिन तुमने पहचाना नहीं है।

जो काम करते हैं पसीना बहाते हैं,
उनके पास में कोई बहाना नहीं है।

किसी के पास में है जागीर पूरी ही,
किसी के पास खाने को दाना नहीं है।

कोई सोता रुपयों के बिस्तर लगा के,
पर किसी के पास एक आना नहीं है।

जिधर देखो उधर ही लूट मची है यारो
हमारे प्यार के काबिल जमाना नहीं है।

रिश्वत लेकर तिजोरियाँ भरना अपनी,
यह अपनी मंजिल को पाना नहीं है।

नींव को छोड़कर कंगूरे पर बैठ जाना,
यह सफर जिंदगी का सुहाना नहीं है।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति