✍️ मन दर्पण ✍️
✍️दिव्य शब्द संदेश ✍️
हमरूह पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशन के लिए तैयार डॉक्टर दक्षा जोशी की एकल काव्य संग्रह प्रकाशन के लिए यह प्राक्कथन है। यह जानकर प्रसन्नता हुई डाक्टर दक्षा जोशी ने अपनी काव्य कृति ‘मन दर्पण’ के प्राक्कथन सहित काव्य कृति की प्रति मुझे अध्ययन करने हेतु दी एवं शब्द संदेश लिखने का आग्रह किया। कवयित्री के आग्रह को स्वीकार करते हुए जब मैंने आद्योपांत काव्य कृति में संजोंई गई कविताओं का अध्ययन किया तो मुझे लगा कवयित्री स्वयं अपनी रचनाओं के माध्यम से मानस लोक की यात्रा पर निकल पड़ी है।
अपनी कविता में उन्होंने स्वीकार किया है-
कैसा है- ये मन का दर्पण, पता नहीं क्या कहता है, खुली किताब कलम को लेकर, सपना लिखता रहता है।
यथार्थ में अपने मूल स्वरूप में मनुष्य का मन स्वच्छ निर्मल एवं पारदर्शी रहता है। सब रस रंग संसार में मनुष्य जो भी कुछ कल्पना, कामना और अनुभव स्वप्न रूप और यथार्थ देखता है, उनके माध्यम से मनुष्य के मन पर पढ़ने वाले संस्कारों का प्रतिबिंब संवेदन और परावर्तन के संस्कार एवं प्रत्ययों के रूप में अनुभूति बनकर उभरता है।
डॉक्टर दक्षा जोशी की काव्य कृति में सरस्वती वंदना, शिव वंदना, मन घूम रहा, मन से बोझ उतार दो, तन और मन, मन की आवाज, आईना, अनंत तक समानांतर रेखाएं, भविष्य की आशाएं, मैं खुद से प्यार करती हूं!
वक्त की माया, आज तुम फिर याद आए ओ यारा, आत्म दर्शन, निर्मोही कान्हा, मन का दर्पण, मानस चित्र, दर्पण के उस पार कविताएँ विशेष रूप से प्रकृति द्वारा प्रदत्त मनुष्य को मानस शक्ति की विवेचना और व्याख्या करती प्रतीत हुईं। उक्त कविताएँ भूमंडलीकरण के युग में विज्ञान ने जो प्रगति की है, उसके संबंध में मनुष्य के व्यवहार को रेखांकित करती प्रतीत होती हैं। रचनाओं को पढ़कर लगा भारतीयों ने सुदूर अतीत में ही मनुष्य के मन की शक्ति और उसके महत्व को पहचान कर ही कहा है-
“मनुष्याणां कारणं बन्ध मोक्षयो:”
तक कह डाला था जो आज आध्यात्मिक ही नहीं आधिभौतिक दृष्टि से भी सही सिद्ध हो रहा है। मनुष्य की अशरीरी समस्याओं की दृष्टि से मनोविज्ञान अथवा मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति को वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान का महत्वपूर्ण अंग स्वीकार कर लिया गया है।
सांसारिक जीवन में एक लंबी अवधि तक यह विज्ञान पूर्व और पश्चिम दोनों में ही दर्शन का एक अंग माना जाता रहा है ।केवल बीच की कुछ शताब्दियों में भौतिकवादी दृष्टिकोण की प्रधानता होने पर इसका दार्शनिक आधार शिथिल पड़ गया था। पश्चिम के कुछ विद्वानों ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मन और आत्मा नाम की कोई चीज ही नहीं है। जो कुछ भी है वह भौतिक क्रिया-प्रतिक्रिया मात्र है। फ्रायड के समय से पुनः इसमें परिवर्तन हुआ। अब भी प्रमुख रूप से वस्तुनिष्ठ पश्चिमी मनोविज्ञान तथा आत्मानुभूति, आत्म दर्शन और सहजयोग को महत्व देने वाले भारतीय दर्शन में एक अंतर है किंतु इसके भी विचारों के क्षेत्र में धीमे-धीमे ही सही किंतु निश्चित रूप से हो रहे अधिकांश परिवर्तनों से कालांतर में समाप्त हो जाने के लक्षण स्पष्ट हो चुके हैं।
डॉक्टर दक्षा जोशी की ‘मन दर्पण’ काव्य कृति के अंदर उपरोक्त वर्णित कविताएँ इसी विषय वस्तु को रेखांकित करती प्रतीत होती हैं।
डॉक्टर दक्षा जोशी ने अपनी ‘मन दर्पण’ काव्य कृति में एक कविता के माध्यम से निरूपित किया है-
“सोचते हैं, हम जो भी, मन हमें वह दिखलाता है, जाना चाहें कहीं भी हम, मन हमें वहाँ पहुँचाता है।”
एक रचना में उन्होंने कहा है-
“मन छिपकर ही रो पाता है। तन तो मिट्टी हो जाता है, मन को प्रभु शरण आना है।”
इस दृष्टि से मन मनुष्य शरीर में इंद्रियों एवं बुद्धि तथा मस्तिष्क के मध्य सेतु का कार्य करता है। मन की यात्रा इंद्रियों से परे भी अतीन्द्रिय क्षितिज की ओर है।
डॉक्टर दक्षा जोशी ने अपनी रचना अहसास में लिखा है…
“लगाव नहीं है मुझे तुमसे, ठहराव हो तुम मेरा, जहां से मैं कभी गुजरना नहीं चाहती।”
इन पंक्तियों को पढ़कर लगता है। कवयित्री/लेखिका डॉक्टर दक्षा जोशी वहाँ प्रतिष्ठित हो चुकी हैं, जहां उन्हें प्रतिष्ठित होना चाहिए।
काव्य कृति में कश्ती शीर्षक कविता में उन्होंने कहा है-
“जी ना पाऊंगी बिन तुम्हारे, प्यारा मंजर दिखला दो अपना, हसरत पूरी हो जाएगी, अगर दिखा दो अपना प्यारा सपना।”
कविता के शब्दार्थ का यदि हम भावात्मक विश्लेषण करते हैं तो निष्कर्ष प्राप्त होता है- उनका मन शरीर और आत्मा के मध्य सेतु रूप अपने अस्तित्व को अपने आधार में विलेपन करके रूपांतरित होने को दृढ़ संकल्पित है। हमारे यहाँ मन को शिव संकल्पवत् कहा गया है। शिव स्वयं शक्ति सहित कल्याण स्वरूप है। रचना के माध्यम से लगता है कवयित्री का अभीष्ट शिवत्व प्राप्ति है।
उनकी एक अन्य रचना की पंक्तियाँ इसकी पुष्टि करती प्रतीत होती हैं –
“मैं वहीं की वहीं रही, जहाँ उसने आखिरी बार मुझे देखा था।अब फिर…. कविता की पंक्ति-मुझे कुछ समझ न आए, जब भी आँखें बंद करूँ तुम आज फिर याद आए।”
मुझे विश्वास है, कविताओं का पठन करते हुए पाठक को लगेगा वह स्वयं इन कविताओं में कहीं ना कहीं है।
काव्य संग्रह की रचनाओं का अध्ययन करते हुए लगता है, मन दर्पण रूप यह दृश्य संसार योग स्वरूप है-योग में अनादि चिति योग रहस्य के अंतर्गत चिति का चित्त में समाहित होना वर्णित है। कथन है मन ही हमारा मित्र और शत्रु है, कविताओं की विषय-वस्तु इस ओर ध्यान आकर्षित करती है।
चिति का जब चित्त से योग हो जाता है, तब मन दर्पणवत् स्पष्ट देख पाता है, मनुष्य की इच्छा जब ईश्वर को प्राप्त करने के लिए जाग्रत होती है तब सुसंस्कारों का मन में उदय स्वत: ही होने लगता है। काव्य कृति की रचनाओं में रचनाकार आराध्य, आराधक, स्वरूप प्राप्ति के लिए अपने रचनाधर्मी रूप आराधना कर्म के बल पर स्वयं की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील है।
‘मन दर्पण’ काव्य संग्रह की कविताएँ निरूपित करती हैं – मन के बारे में ज्ञान प्राप्त करना, इच्छा से मन पर अधिकार करना, मन से बुद्धि को हमेशा जाग्रत चेतना में रखने के प्रति संकेत करती प्रतीत होती हैं। भारतीय दार्शनिक मनोविज्ञान एवं योग विज्ञान के अनुसार मन, बुद्धि, चित्त का परस्पर संबंध है। मन द्वारा बुद्धि व बुद्धि से चित्त नियंत्रित होता है। चित्त की वृत्तियाँ मन की शांति-अशांति पर निर्भर करती हैं। चित्त के द्वारा चिंतन होता है। चिंतन उसी वस्तु का होता है, जिसे मन के द्वारा मनन किया जाता है। यह तभी होता है जब आराधक अपनी आराधना में नियत कर्म पथ पर चलकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति में प्रेम अनुभूत करता है। यह प्रेम ही मन को स्थिरता प्रदान कर चित्त की वृत्तियों को शांत कर देता है और आराधक स्वयं को सिद्ध अवस्था में पाता है।
यथार्थ में मन की उत्पत्ति वायु से है। इसीलिए मन वायु की तरह चंचल सर्वत्र गतिमान, सुख-दु:ख आदि को अनुभव करने वाला, कर्म करने वाला संस्कारों से प्रभावित होने वाला है। मन में कोई दोष नहीं होता, मन जिसे चाहता है, उसकी ओर बार-बार भागता है। यह शांति की खोज में ही रहता है। भौतिक सुखों से अतृप्त मन आध्यात्मिक सुख से शांत होने लगता है। मन को क्षण भर में नियंत्रित नहीं किया जा सकता, किंतु धीरे-धीरे वह शांति का अनुभव करता हुआ स्थिर होने लगता है। मन के स्थिर होने पर ही क्रियाओं का फल मिलता है। अंतःकरण के अंतर्मिलन योग दृश्य, देव कृपा आदि मन की स्थिरता पर ही निर्भर करती है।
डॉक्टर दक्षा जोशी की यह एकल काव्य कृति अपनी कविताओं के माध्यम से पाठकों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं साहित्य जगत प्रतिष्ठित होगी यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है। कृति की प्रत्येक रचना मनुष्य का ध्यान उसके स्वयं के अस्तित्व और आधार के प्रति आकर्षित करने में सफल रही है। वर्तमान समय में कोलाहल भरे जीवन में काव्य कृति की रचनाओं का पठन पाठक के लिए निश्चय ही आनंददायक रहेगा, ऐसा मुझे कृति की कविताओं का आद्योपांत अध्ययन करने से प्रतीत हुआ है। अंत में मैं ‘मन दर्पण’ काव्य-संग्रह के प्रति अपनी शुभेच्छा व्यक्त करते हुए लेखिका के सार्थक परिश्रम की हृदय से सराहना किए बगैर नहीं रह सकता। यह काव्य-संग्रह मनोविज्ञान एवं दर्शन के पाठकों, लेखकों एवं विद्यार्थियों सभी के लिए उपादेय रहेगा ऐसा मेरा विश्वास है।
मोहनलाल वर्मा
प्रकाशक/संपादक
देव चेतना मासिक पत्रिका
जयपुर
प्रस्तुति