बाल मजदूर

बाल मजदूर

🇮🇳 वृत्तांत – बाल मजदूर 🇮🇳

वो देखो-देखो..!!!

भट्टा बस्ती में ईंटों के बीच,

बचपन को देखो!

गारे में सने,

बहती नाक,

हाथों में ईंटें,

भारी बोझा उठाते देखो!

उलझे हुए बाल,

नंगे पैर फटे हाल,

धूप में सना काला चेहरा,

गोल-गोल आँखें घुमाते देखो!

सुबह देखो-शाम देखो!

दोपहरी में भी ईंटें उठाते देखो!

ना रात को सोते,

ना दिन में चैन,

सदा ईंटों में ही रहते बेचैन।

एक-एक कर ईंटें गिनते,

भूल जाते फिर गिनते-गिनते,

फिर-फिर गिनते।

फिर विश्वास जताते,

गिन-गिन कर ईंटों को चुनते।

मां कहती ……

बेटा जल्दी करो,

आज इन सभी को चुनते हैं।

पिता बैठे-बैठे…..

बीड़ी की फूंक लगाते हैं।

दूर से देती सुनाई धीमी-धीमी,

आती कानों में टन-टन-टन-टन,

चौकन्ने हो जाते हैं।

ललचाई नज़रों से देखें कुछ पल,

फिर काम पर लग जाते हैं।

गांठ खोलती मां पल्ले की,

फिर निहारती बच्चों को,

उठती हूंक मन में,

बेबस हो जाती है।

पूर नहीं हो सकती बच्चों की,

वापस गांठ लगाती है।

टनटन करता वो डेरे पर,

सब बच्चों को एक-एक कर,

कुल्फी देने लगता है।

मां दौड़ उठी बोली भैया,

पूरे पैसे आज नहीं हैं,

बस रहने दो,

बच्चे कुल्फी लेकर चाट रहे थे।

धड़कन बढ़ती देख,

सब नजारा समझ गया,

तत्काल बोला……

कोई बात नहीं मां…..

यह भी मेरे ही बच्चे हैं।

आंखों से ओझल,

टन-टनन-टन-टन….

ध्वनि मंधरी-मंधरी…

निःशब्द हो………।

‘नायक’ बाबूलाल नायक

टोंक (राजस्थान)