संदेश साझा करें लेकिन समझकर ही

संदेशों को स्पष्टता देने की कवायद

निम्न संदेश को देखिए

सुंदर डिजाइन और प्रस्तुति लेकिन शब्दों का असंगत प्रयोग

क्या समझने की जरूरत है?

 

“जिन लोगों को हर चीज में बुराई ढूंढने की आदत होती है, वे आपकी बुराई ही करेंगे।
चाहे आप अच्छे हों या बुरे, लेकिन आप शांत भाव से अपने कर्म करते रहिए, निंदा से मत घबराइए
क्योंकि निंदा उन्हीं की होती है जो जिंदा होते हैं। बाकी, मरने के बाद तो सबकी तारीफ ही होती है।”
इस संदेश को ‘उलझन सुलझन’ मासिक स्पष्ट कर देने की आकांक्षी है क्योंकि आज हर कोई कुछ ना कुछ साझा करने को आतुर है बिना संदेश के भाव को समझें।

उपरोक्त संदेश में ‘निंदा’ शब्द का उपयोग नितांत गलत है और आलोचना या समीक्षा करने की क्षमता या समझ यदि साझा करने वाले में नहीं है तो ऐसे संदेशों का विस्तार होता जाएगा जिस से गलत समझ विकसित होती चली जाएगी।

संदेश की समीक्षा

आपने बहुत गहन बिंदु उठाया है। सच है कि जब कोई व्यक्ति किसी संदेश को बिना उसकी गहराई और भाव को समझे साझा कर देता है, तो उसके अर्थ में विकृति आ सकती है। आइए आपके द्वारा साझा किए गए संदेश को तटस्थ भाव से स्पष्ट करने का प्रयास करें—

मूल संदेश का भाव

यह कहना चाहा गया है कि जो लोग आदतन हर चीज़ में बुराई देखते हैं, वे दूसरों की निंदा करते रहते हैं। इसलिए व्यक्ति को अपने कर्मों में शांत रहना चाहिए और निंदा से विचलित नहीं होना चाहिए।

सटीक शब्द चयन की असमर्थता आज की समस्या

‘निंदा’ शब्द का प्रयोग यहाँ असंगत है, क्योंकि निंदा का अर्थ है — किसी की बुराई को बढ़ा-चढ़ाकर, दुर्भावनापूर्वक कहना।

जबकि कई बार लोग केवल आलोचना (criticism) या समीक्षा (review) करते हैं, जो आवश्यक रूप से नकारात्मक नहीं होती।

जब इसे ‘निंदा’ कहा जाता है, तो पूरा भाव नकारात्मक हो जाता है और यह गलत संदेश फैलाता है कि हर तरह की प्रतिक्रिया या प्रश्न उठाना बुरा है।

तटस्थ स्पष्टता

सही समझ यह होनी चाहिए कि –

हर आलोचना बुरी नहीं होती। रचनात्मक आलोचना से व्यक्ति अपने कार्य को और बेहतर कर सकता है।

बुराई खोजने की आदत रखने वालों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए, क्योंकि उनकी टिप्पणियाँ उद्देश्यपूर्ण नहीं होतीं।

लेकिन समीक्षा और आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि वही व्यक्ति की प्रगति का मार्ग प्रशस्त करती है।

संशोधित रूप (स्पष्ट संदेश)

“जिन लोगों को हर जगह दोष निकालने की आदत होती है, वे आपकी आलोचना ही करेंगे।
आपका कर्म यदि सच्चाई और ईमानदारी पर आधारित है तो आपको विचलित नहीं होना चाहिए।
याद रखिए, रचनात्मक आलोचना सुधार का अवसर देती है, परंतु निरर्थक नकारात्मक टिप्पणियों को नज़रअंदाज़ करना ही बुद्धिमानी है।
जीवन में सार्थक काम करने वालों पर ही चर्चा होती है — चाहे वह प्रशंसा हो या आलोचना।”

👉 इस तरह संदेश न केवल संतुलित हो जाएगा, बल्कि पाठकों में सही समझ भी विकसित करेगा कि निंदा और आलोचना में फर्क है।

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