सुविचार

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भूमिका

लेखिका के जीवन दृष्टिकोण का यह सरल रूप मानवता को यह समझाने में मदद करेगा कि सफलता केवल बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और परम उद्देश्य की ओर बढ़ते रहने से मिलती है। संघर्ष जीवन का हिस्सा है, और प्रयास ही असली साधना है। जो हार नहीं मानते, वही अंततः अपने अस्तित्व की परिपूर्णता को प्राप्त करते हैं।

जीवन की सफलता

जीवन एक विशाल समुद्र की तरह है। समय के किनारे अनगिनत ऊर्जा की लहरें आती-जाती रहती हैं। इनका न कोई आरंभ है और न कोई अंत, बस बीच में ही ये चलती रहती हैं। मनुष्य भी उन लहरों की तरह एक छोटा-सा हिस्सा है – जैसे एक बीज, जिसमें अनगिनत संभावनाएँ छुपी होती हैं।

लहर का सपना होता है कि वह समुद्र बन जाए। बीज की इच्छा होती है कि वह बड़ा वृक्ष बने। जब तक लहर समुद्र की व्यापकता में नहीं फैलती, और बीज फूलों और फलों से नहीं भरता, तब तक उसकी तृप्ति संभव नहीं है। इसी तरह मनुष्य भी चाहता है कि वह परमात्मा जैसा महान बन जाए।

परमात्मा कोई आसमान में बैठा हुआ देवता नहीं है। जीवन की पूर्णता और सफलता ही परमात्मा है। जब तक मनुष्य इस परम तृप्ति को नहीं पा लेता, तब तक वह असफलता, बेचैनी और अधूरेपन का अनुभव करता है। चाहे उसके पास कितना भी धन या वैभव क्यों न हो, मन की खाली जगह भर नहीं पाती।

यह पीड़ा स्वाभाविक है। अगर हर व्यक्ति बिना संघर्ष के ही सफल हो जाता, तो बीज कभी वृक्ष नहीं बनता, और लहर समुद्र में विलीन नहीं हो पाती। संघर्ष ही जीवन को अर्थ देता है। जब तक मनुष्य अपने भीतर छिपी शक्तियों को पहचान कर प्रयास करता नहीं रहेगा, तब तक उसे संतोष और सफलता नहीं मिलेगी।

सच्ची सफलता वही है, जब मनुष्य परमात्मा की अनंतता को महसूस करे। जो लोग समझते हैं कि उन्हें सब कुछ मिल गया है, वे वास्तव में अभागे हैं। भाग्यशाली वे हैं जो जानते हैं कि जीवन में असफलता भी आएगी, फिर भी हार नहीं मानते। निरंतर प्रयास करने वाले अंततः परमात्मा को पा लेते हैं – यानी जीवन में पूर्णता और शांति।

सूचना स्रोत

श्रीमती तृप्ति खटाना जी

पाठ्य विस्तार

प्रस्तुति