छाया जी की कलम

क्षणिकाएँ

(1)
नालंदा की ईंटें बोलीं,
“हमने युग है देखा-
अग्नि सब कुछ जला सकती है,
पर ज्ञान कभी नहीं जलता।”
(2)
नालंदा दीपक है,
जिसकी लौ राख में दबकर भी,
आकाश को छू लेती है।
(3)
नालंदा की माटी से,
ग्रन्थों की सुगंध आती,
आज भी हवाओं में,
उनकी आवाज गूँजती है।
(4)
कौन कहता है…
“ज्ञान नष्ट हुआ”
अग्नि हार गई,
नालंदा जीत गया।
(5)
खण्डहर नहीं
ईंटें भी गान करती हैं,
खुला आकाश
गवाही देता है।

ज्ञान दीप नालंदा

सुनो सुनाती हूँ मैं तुमको,
नालंदा की गाथा।
शिक्षा का भंडार यहाँ पर,
विश्व झुकाए माथा।।
जग को नव विधान है देकर,
सत्य धर्म फैलाया।
शीलभद्र आचार्य रहे थे,
प्रशिक्षु शीश झुकाया।।

सागर से मोती को चुनने,
ह्वेनसांग भी आया।
पहुँच इत्सिंग भारत में तब,
संस्कार चित्त भाया।।
रैन दिवस भारी तप होता,
जग को पार लगाया।
ग्रन्थ भवन अविराम खड़े थे,
नौ मंजिल तक साया।।

नालंदा, हे ज्योति पुंज तू,
भारत मान बढाया।
विद्या का मधुरस बरसाया,
जग का स्वप्न सजाया।।
शिष्य देश-देशांतर आए,
ज्ञान सुधा रस पीते।
गुरु चरणों में वंदन करते,
सत पथ पर ही जीते।।

वेद-शास्त्र की वाणी गूँजे,
सूत्रों की झंकारें।
तर्क-वितर्क विमर्श हो रहे,
महा ज्ञान भंडारे ।।
ग्रंथालय में दीपक जलते,
अमर प्रेम की गंगा।
शब्दों से इतिहास सँवारें
ज्ञान सुधा मन चंगा।।

खिलजी ने है आग लगाकर,
नष्ट इसे करवाया।
पुस्तक जला दी गई पूरी
अंधकार फैलाया।।
राख बनी पर बुझा न पाया,
लौ का सत्य उजाला।
नालंदा की यादें जागी,
अमर दीप मतवाला।।

गुरु के वचन जहाँ हैं कोमल,
ज्ञान अमिय बरसाते।
शिष्य हृदय में दीप जलाकर,
संकल्पित हो जाते।।
पावक वर्षा नहीं मिटी है,
तेरी अमर कहानी।
नालंदा तू विश्व ज्योति है,
भारत मातु निशानी।।

ज्ञान ज्योति से जग आलोकित,
जगती गौरव गाया।
नालंदा की गाथा सुनकर,
जन-जन शीश झुकाया।।
नालंदा वरदान बना था
भारत धरती प्यारी।
नालंदा अवशेष शेष है
गाथा कहते सारी।।

आज धरा पर नव नालंदा,
ने फिर दीप जलाया।
हुआ ज्ञान संस्कृति अवलोकन
जग में नाम कमाया।।
फिर से दीप जला परिसर में,
जागी है अभिलाषा।
नालंदा तू कालजयी है,
भारत की परिभाषा।।

प्रस्तुति

रचनाकार