🌸अपनों से अपनापन
प्रिय श्रोतागण,
जीवन का सबसे बड़ा सुख क्या है? धन? वैभव? पद? नहीं…
सबसे बड़ा सुख है अपनों का साथ।
पर आज के समय में सबसे बड़ी कमी भी यही है कि अपने ही दूर हो रहे हैं।
मैं आपसे एक छोटी-सी बात साझा करता हूँ।
एक बुज़ुर्ग पिता कई महीनों से अपने बेटे का इंतज़ार कर रहे थे। बेटा पास के शहर में ही नौकरी करता था। पिता अक्सर कहते—“बेटा, आ जाना, मिलने का मन है।”
बेटा कहता—“हाँ पिताजी, जल्दी ही किसी अवसर पर आऊँगा।”
लेकिन वह अवसर कभी आया ही नहीं।
धीरे-धीरे पिता ने इंतज़ार करना छोड़ दिया और बेटे ने मिलना।
रिश्ता वहीं होते हुए भी, दिलों की दूरी ने उसे बिखेर दिया।
अब ज़रा सोचिए—क्या सचमुच मिलने के लिए कोई खास वजह चाहिए थी?
क्या सिर्फ पाँच-दस मिनट की बेवजह मुलाक़ात उस पिता के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सकती थी?
इसीलिए मैंने कहा है—
“अपनों से यदि सचमुच अपनापन चाहते हैं,
तो उनसे बेवजह भी मिलिए।”
🌿 वर्तमान परिप्रेक्ष्य के उदाहरण
1. दोस्तों के बीच
आजकल हम मित्रों को तभी याद करते हैं जब कोई समारोह हो, शादी हो, या व्हाट्सऐप पर “हैप्पी बर्थडे” लिखना हो।
पर सच्चा दोस्त वह है जो बिना कारण दरवाज़ा खटखटा दे और कहे—“याद आया, तो चला आया।”
ऐसा एक पल दोस्ती को जीवनभर की मजबूती दे देता है।
2. पड़ोसियों के बीच
हमारे मोहल्लों में पहले लोग एक-दूसरे के घर बेवजह चाय पर चले जाते थे।
अब अपार्टमेंट की दीवारें इतनी ऊँची हो गई हैं कि महीनों तक सामने वाले का हालचाल तक नहीं पता।
पर यदि हम समय-समय पर बेवजह मिलने जाएँ, तो वही मोहल्ले फिर परिवार जैसे बन सकते हैं।
3. कार्यस्थल पर
ऑफिस में भी यही हाल है—हम सहकर्मियों से तभी बात करते हैं जब कोई ज़रूरत हो।
पर एक सच्चा अपनापन तब बनता है जब हम पूछते हैं—“कैसे हैं आप?”
बिना कारण पूछे गए ऐसे प्रश्न रिश्तों को सहयोग और संवेदनशीलता से भर देते हैं।
🌸 संदेश
अपनों से मिलना त्योहारों, अवसरों या बुलावों का मोहताज नहीं होना चाहिए।
रिश्ते तभी जीवित रहते हैं जब हम बेवजह भी मिलने जाएँ।
याद रखिए—
छोटी-सी मुलाक़ात दिलों की बड़ी से बड़ी दूरी मिटा देती है।
और कई रिश्ते केवल इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि लोग बुलावे का इंतज़ार करते रहते हैं।
इसलिए,
आज ही किसी अपने के पास जाइए, बिना वजह।
कहिए—“तुम याद आए, तो चला आया।”
यक़ीन मानिए, यही सबसे बड़ा अपनापन है।
प्रवचन दाता
आचार्य निखिल
पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति