आलेख

राम क्यों? रामराज्य क्यों? 

त्याग और मर्यादा की जीवंत परंपरा

विजयादशमी और दशहरा केवल रावण पर विजय का पर्व नहीं है, यह त्याग, बलिदान और मर्यादा की परंपरा को याद करने का अवसर भी है।

कभी आपने सोचा है कि हम केवल राम की बात क्यों करते हैं?

रामराज्य की कल्पना ही क्यों करते हैं?

रामायण का मंचन ही क्यों होता है?

इतिहास में सम्राट अशोक, मिहिर भोज, चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, चंदेल या परिहार जैसे अनेक प्रतापी राजा हुए। श्रीकृष्ण का राज्य भी अत्यंत प्रभावशाली रहा। परंतु हमारे समाज और संस्कृति में रामराज्य ही आदर्श क्यों बना?

रामायण: त्याग और बलिदान की महागाथा

उत्तर सीधा है—क्योंकि रामायण केवल सत्ता और राज्य की कहानी नहीं है, बल्कि त्याग और बलिदान की महागाथा है।

रामायण हमें बताती है कि

“राजधर्म का पालन अपने स्वार्थ से ऊपर होता है” और “मर्यादा ही समाज की आधारशिला है”।

राजा दशरथ ने युद्ध के समय अपनी रानी कैकेयी को साथ आने की अनुमति दी। कैकेयी ने युद्धभूमि में अपने प्राणों की परवाह न करते हुए रथ का पहिया संभाला और अपने हाथ को घायल कर दिया। इस बलिदान से प्रसन्न होकर दशरथ ने उसे वरदान दिया। बाद में कैकेयी ने उसी वरदान का उपयोग राम को वनवास भेजने और भरत के लिए राज्य मांगने में किया।

राजा दशरथ ने अपने पुत्र के प्रति असीम प्रेम के बावजूद वचन का पालन किया और प्राण त्याग दिए। राम ने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए वनवास स्वीकार किया। सीता ने राजमहल के सुख छोड़कर अपने पति के साथ वनगमन किया। लक्ष्मण ने भी पत्नी और ऐश्वर्य का त्याग कर बड़े भाई के साथ वनवास का मार्ग चुना।

भरत ने राज्य पाकर भी उसे ठुकरा दिया और राम को लौटाने वन में गए। अंततः उन्होंने राम की खड़ाऊँ को सिंहासन पर रखकर स्वयं एक तपस्वी जीवन जीया।

राम ने रावण का वध किया, परंतु लंका से कोई संपत्ति, वैभव या खजाना नहीं लाए। सब कुछ विभीषण को सौंपकर केवल सीता के साथ लौट आए। यही त्याग उन्हें महान बनाता है।

राजधर्म की रक्षा हेतु जब आवश्यक हुआ, तो राम ने अपने प्रिय सीता का भी त्याग किया। सीता ने भी इस निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लिया।

राम बनाम अन्य राजवंश

अन्य देशों और राजवंशों में सिंहासन के लिए भाई ने भाई की हत्या की, पुत्र ने पिता को मार डाला और भतीजे को रास्ते से हटा दिया। सत्ता की लालसा में केवल रक्तपात और षड्यंत्र हुए।

किन्तु रामायण हमें सिखाती है कि सत्ता त्याग का विषय हो सकती है, परंतु छल, प्रपंच और हत्या का नहीं।

रामराज्य की निरंतरता

इसीलिए आज भी रामलीला, रामायण और रामराज्य की स्मृति जीवित है। यह केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक मर्यादा, नैतिक बल और त्याग का प्रेरक संदेश है।

रामायण हमें यह नहीं सिखाती कि कैसे राज्य को लूटा जाए, बल्कि यह सिखाती है कि कैसे त्याग और बलिदान से जीवन को महान बनाया जा सकता है।

इसी कारण राम और रामराज्य हमारे लिए आदर्श हैं और रहेंगे।

सभी को राम-राम और विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। 🙏

रचनाकार

डॉ. राजीव अधाना ✍️

(लेखक नाक, कान और गले के विशेषज्ञ हैं और नियमित प्रैक्टिस में हैं।)

पाठ्य उन्नयन और प्रस्तुति