“सवेरे पाँच बजे सिधारे उदराज बने शिक्षा की ज्योत के साक्षी”
भारत जैसे विशाल देश की एक अरब चालीस करोड़ जनसंख्या में से एक नाम आज स्मृति में अमिट हो गया — उदराज सिंह।

आज, 7 अक्टूबर 2025 की भोर में, ब्रह्ममुहूर्त के उस पवित्र समय पर जब पूरी सृष्टि नवीन ऊर्जा के साथ जागती है, उदराज सिंह इस लोक से उस लोक की ओर प्रस्थान कर गए। प्राचीन मान्यता है कि सवेरे पाँच बजे का समय वह प्रहर है जब आत्मा सबसे निर्मल, शांत और प्रभु के समीप होती है। ऐसे समय में उनका जाना केवल एक संयोग नहीं, वरन् उनके कर्मों की शुद्धता और जीवन की सादगी का द्योतक है।
दिखने में भले ही वे आयु की कमजोरी से झुके हुए प्रतीत होते थे, परंतु भीतर से वे दृढ़ इच्छाशक्ति और श्रमशीलता के प्रतीक थे। उनके चेहरे की रेखाएँ केवल उम्र नहीं, बल्कि अनुभव और संघर्ष की गाथा कहती थीं। साक्षरता से वंचित रह जाने के कारण उन्होंने अपना अधिकांश जीवन गाँव नवल में ही व्यतीत किया, परंतु इसी सीमित परिधि में उन्होंने अपनी कर्मठता, ईमानदारी और स्वानुशासन् से उस शिक्षा को आत्मसात किया जिसे पुस्तकों में नहीं पढ़ाया जा सकता यानि जीवन की शिक्षा।
उदराज सिंह जैसे असंख्य जन इस समाज में शिक्षा के महत्व की जीवित मिसाल हैं। उन्होंने कभी विद्यालय की चौखट नहीं लांघी, परंतु अपने बच्चों और अगली पीढ़ी को यही सिखाया कि “जो अवसर मिले, उसे पहचानो और भुनाओ।” उनकी आँखों में सदैव यह विश्वास झलकता था कि शिक्षा केवल अक्षर ज्ञान नहीं, बल्कि स्वयं को समझने और अपने कर्मों को दिशा देने की क्षमता है।
आज जब गाँवों में विद्यालय, पुस्तकालय और शिक्षा मिशन पहुँच रहे हैं, तो यह हमारे लिए उन पीढ़ियों को नमन करने का समय है जिन्होंने बिना पढ़े भी ज्ञान का आदर किया। जिनकी साधारण दिनचर्या ने असंख्य लोगों को यह सिखाया कि शिक्षा वह दीपक है, जो एक बार जल जाए तो पीढ़ियों का अंधकार हर लेता है।
उदराज सिंह जी का जाना एक व्यक्ति का अंत नहीं, एक विचार का अवसान है — वह विचार जो कहता है कि “सीमाएँ शिक्षा से नहीं बनतीं, शिक्षा सीमाएँ तोड़ती है।”
उनकी सरलता, कर्मठता और ज्ञान के प्रति आदर भाव हम सबके लिए प्रेरणा हैं।
🌸 “श्रद्धांजलि उस इंसान को, जिसने प्राकृतिक रूप से भोर में सृष्टि से प्रस्थान कर हमें अर्थाया कि जीवन की सच्ची उजास शिक्षा में ही निहित है।”
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