आचार्य निखिल के कथन का भाव, मनःस्थिति और दृष्टांत सहित विश्लेषण
🌟 मूल कथन
“ना कोई रात काली हो, और ना ही कोई जेब खाली हो।
सब ही के समक्ष सुख भरी प्रतिदिन थाली हो।
दिलों में प्रेम के दीपक इस प्रकार प्रकाशित हों कि
सभी के मन—सभी की नित दिवाली हो।” — आचार्य निखिल
🧠 कथन का विश्लेषण
यह केवल शुभकामना नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दृष्टि है —
आचार्य निखिल दीपावली को सिर्फ दीप जलाने का उत्सव नहीं, बल्कि विचारों को प्रकाशमान करने का संकल्प मानते हैं।
1. “ना कोई रात काली हो” — अंधकार का अंत
* यहाँ रात केवल भौतिक अंधकार नहीं, बल्कि अज्ञान, भय, अवसाद और दुख की रात है।
* गुरुजी की इच्छा है कि जीवन में किसी की भी उम्मीद की लौ बुझी न रहे।
2. “ना ही कोई जेब खाली हो” — आर्थिक संतुलन की कामना
* यह केवल धन की बात नहीं, बल्कि अभाव, भूख और वंचना से मुक्ति का संदेश है।
* वे चाहते हैं कि दीपावली केवल अमीरों की नहीं, हर हृदय की दीपावली बने।
3. “सबके समक्ष सुख भरी थाली हो” — भूख नहीं, संतोष हो
* थाली प्रतीक है जीवन के मूलभूत सुख — अन्न, शांति, सम्मान और स्नेह का।
* जहाँ पेट भरा हो, मन शांत हो और जीवन में संतुलन हो।
4. “दिलों में प्रेम के दीपक जलें” — अंदर की रोशनी
* असली दीपावली न तेल से जलती है, न मिट्टी के दीपक से—
असली दीया तब जलता है जब हृदय में प्रेम, क्षमा और अपनापन प्रज्वलित होता है।
5. “सभी के मन—सभी की नित दिवाली हो” — स्थायी उत्सव का संदेश
* त्योहार एक दिन का न हो, बल्कि सोच का स्वरूप बन जाए।
* जीवन यदि प्रकाश से भरा हो, तो हर दिन दीपावली हो सकता है।
🧘♂️ आचार्य निखिल की मनःस्थिति
इस वाक्य को कहते समय गुरुदेव के भीतर —
✔ समाज के दर्द को महसूस करने वाली करुणा थी,
✔ आध्यात्मिक दृष्टिकोण था कि दीप केवल घरों में नहीं, हृदयों में भी जलना चाहिए,
✔ और विश्वकल्याण की कामना थी — एक ऐसी दुनिया की जहाँ
न भूख हो, न भय, न कटुता, न अंधकार।
यह वाक्य किसी शुभकामना कार्ड की पंक्ति नहीं, बल्कि एक संत हृदय से निकली विश्व मंगल की प्रार्थना है।
📿 गुरुजी का प्रवचन — मंद स्वर में
गुरुजी शांत दीपवत प्रकाश में बैठे हैं। शिष्यों के समूह के सामने वे बोलते हैं—
“मेरे बच्चो! दीपावली की असली ज्योति घरों में नहीं, दिलों में जलती है।
मैं कामना करता हूँ—
न किसी की रात इतनी घनी हो कि भीतर से रोशनी खो जाए,
न किसी की जेब इतनी खाली हो कि मर्यादा भी बिक जाए।
हर हाथ में रोटी हो, हर मन में रौशनी हो।
दीप ऐसे जलें कि ईर्ष्या बुझ जाए,
और प्रेम ऐसा खिले कि हर दिन किसी की दिवाली बन जाए।”
📜 दृष्टांत एक — दो दीपक की कहानी
एक बार दो दीपक थे।
एक मंदिर में था, दूसरा किसी गरीब की झोपड़ी में।
मंदिर का दीपक बोला— “मेरी लौ कितनी ऊँची और प्रतिष्ठित है!”
झोपड़ी का दीपक शांत रहा।
रात बीती। आंधी आई। मंदिर का दीपक बुझ गया।
पर झोपड़ी का दीपक बच गया, क्योंकि उसके आसपास प्रेम भरी हथेली ने उसे ढक लिया था।
गुरुजी कहते हैं —
“दीप की मजबूती तेल से नहीं, संरक्षण से होती है।
और मन की दीपावली धन से नहीं, अपनत्व से होती है।”
📙 दृष्टांत दो — राजा और दीपों का नगर
एक राजा ने कहा — “मैं दीपावली ऐसा मनाऊँगा कि पूरा राज्य जगमगाए।”
उसने सोना बाँटा, हजारों दीये जलवाए।
पर दूर एक गाँव अब भी अँधेरे में था — क्योंकि वहाँ भूख थी, दुःख था, अकेलापन था।
राजा उदास हो गया। तभी एक साधु ने कहा —
“राजन, प्रकाश दीयों से नहीं, दिलों से फैलता है।
रात तभी खत्म होती है जब किसी भूखे के घर थाली पहुँचे,
और जब किसी रोते के पास हाथ पहुँचे।”
🌺 उपसंहार
“दीपावली सिर्फ दीयों से नहीं,
दिलों के उजियारे से मनाई जाती है।
जिसकी करुणा सबको छू ले — वही सच्ची दीपावली है।”
कथन स्रोत

पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति



