निष्क्रियता का रोग

निष्क्रियता का रोग

जागो, जीवन पुकार रहा है

आज के समय में बहुत से लोग कहते हैं — “अब कुछ करने का मन नहीं करता।”

यह वाक्य सुनने में साधारण लगता है, पर यही आधुनिक मानव की सबसे बड़ी समस्या बन चुका है।

आराम, सुविधा और तकनीक के युग में इंसान बाहर से बहुत व्यस्त दिखता है, पर अंदर से एकदम निष्क्रिय हो गया है।

वह सोचता है, “मैं क्यों कुछ करूँ? क्या फर्क पड़ता है?”

यही सोच धीरे-धीरे *उदासीनता* में बदल जाती है।

🕰️ क्या है निष्क्रियता?

निष्क्रियता का मतलब केवल काम न करना नहीं, बल्कि जीवन से रुचि और उद्देश्य का खत्म हो जाना है।

जब व्यक्ति में नई सोच, नया प्रयास या दूसरों के लिए कुछ करने की भावना मर जाती है, तो समझिए वह अंदर से निष्क्रिय हो गया है।

वह सब कुछ देखता है, पर प्रतिक्रिया नहीं देता — जैसे कोई दर्शक मंच पर नाटक देख रहा हो, पर खुद उसमें उतरने की इच्छा न रखता हो।

⚙️ निष्क्रियता के मुख्य कारण और उनके उदाहरण

1. अति-सुविधा का जाल

आज हर चीज़ मोबाइल के एक क्लिक पर है — खाना, कपड़ा, मनोरंजन, पढ़ाई तक।

जब सब बिना मेहनत मिले, तो प्रयास करने की आदत खत्म हो जाती है।

उदाहरण: पहले विद्यार्थी पुस्तकालय जाकर घंटों खोज करते थे, अब “कॉपी-पेस्ट” कर देते हैं। सोचने की क्षमता घट रही है।

2. असफलता का भय

बहुत से लोग शुरुआत ही नहीं करते क्योंकि उन्हें डर लगता है कि अगर हार गए तो लोग क्या कहेंगे।

उदाहरण: कोई गाना सीखना चाहता है पर सोचता है, “अगर बेसुरा निकला तो सब हँसेंगे।”

नतीजा — वह कोशिश ही नहीं करता।

3. तुलना की प्रवृत्ति

सोशल मीडिया ने यह बीमारी और बढ़ा दी है।

लोग दूसरों की सफलता देखकर खुद को छोटा मान लेते हैं और निराश हो जाते हैं।

उदाहरण: किसी को विदेश यात्रा करते देख व्यक्ति सोचता है, “मेरे बस की नहीं,” और धीरे-धीरे अपनी क्षमता पर विश्वास खो देता है।

4. मानसिक थकान और तनाव

लगातार तनाव और काम का दबाव व्यक्ति को भीतर से थका देता है।

उसे लगता है कि चाहे जो कर लूँ, कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

उदाहरण: दफ्तर से लौटकर व्यक्ति परिवार से बात करने की जगह टीवी या मोबाइल में डूब जाता है — यह भी निष्क्रियता का संकेत है।

🌱 निष्क्रियता के दुष्परिणाम

* सोचने और महसूस करने की शक्ति कमजोर हो जाती है।

* रिश्तों में दूरियाँ आने लगती हैं।

* समाज में “मुझे क्या मतलब” जैसी भावना पनपती है।

* और सबसे बड़ा नुकसान — जीवन का अर्थ ही खो जाता है।

🔥कैसे करें सक्रियता की शुरुआत?

सक्रिय होना किसी बड़े काम से नहीं, छोटे कदमों से शुरू होता है।

* हर दिन कुछ नया सीखें — कोई कला, कोई कौशल, कोई आदत।

* दूसरों की मदद करने की कोशिश करें।

* सुबह उठकर अपने दिन का लक्ष्य तय करें, भले छोटा ही क्यों न हो।

* परिवार से बातचीत करें, विचार साझा करें।

छोटे-छोटे कदम ही जीवन में गति और उत्साह लौटाते हैं।

🌞 आह्वान

प्रकृति में सब गतिशील है — हवा, जल, पेड़, पंछी, सूर्य।

जब प्रकृति का हर अंश कर्मशील है, तो मनुष्य क्यों ठहर जाए?

ठहराव जीवन नहीं, जड़ता है।

स्वामी विवेकानंद के शब्द आज भी गूंजते हैं —

“उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

तो आइए,

निष्क्रियता की नींद से जागें,

जीवन को फिर से अर्थ दें,

क्योंकि जीवित वही है — जो सक्रिय है।