🌿 उलझन सुलझन वाला दिन एक अनुभव संस्मरण
आज का दिन कुछ यूँ बीता मानो हर पल कोई न कोई नई सीख देने को आतुर हो।
कार्यालय पहुंचते ही वातावरण में एक अलग-सी ऊर्जा महसूस हुई — शायद इसलिए कि आज रचनाकार श्री भीकम सिंह और समाजसेवी डॉ अशोक चौधरी दोनों पधारने वाले थे।
श्री भीकम सिंह जी अपने सधे हुए स्वभाव और सृजनशील दृष्टि के लिए जाने जाते हैं। आज उन्होंने अपनी दो पुस्तकें भेंट कीं — एक संस्मरणों पर आधारित थी, जिसमें जीवन के अनुभवों की सच्ची झलकियाँ थीं, और दूसरी कविता संग्रह, जो भावनाओं की गहराई से ओतप्रोत थी। उनके शब्दों में संवेदना थी, अनुभव था और जीवन की सुगंध भी। यह मुलाक़ात न केवल साहित्यिक रूप से समृद्ध कर गई बल्कि भीतर यह भाव भी जगाया कि रचना केवल शब्दों का नहीं, आत्मा का भी विस्तार है।
 
इसी बीच डॉ अशोक चौधरी जी आए — एक समाजसेवी, जिनके कार्यों में समर्पण स्पष्ट झलकता है। वे कुछ संपादन कार्य लेकर आए थे, और बातचीत के दौरान उनका संयमित दृष्टिकोण व शब्दों की गरिमा देखने योग्य थी। उनसे मिलना एक व्यावहारिक सीख बन गया — कि समाज के प्रति सच्चा भाव और कार्य की सरलता दोनों साथ चल सकते हैं।

दिन के अंत में लगा कि “उलझन और सुलझन” केवल परिस्थितियों के नाम नहीं, बल्कि जीवन की निरंतर प्रक्रिया हैं। जो हर दिन हमें परखती भी हैं और कुछ सिखाती भी हैं।
आज का दिन यही सिखा गया — कि जब रचनात्मकता और सामाजिक सेवा एक ही छत के नीचे मिलें, तो दिन अपने आप में एक सजीव पाठशाला बन जाता है।
सीख
हर दिन कुछ सिखाने आता है, बस उसे समझने की दृष्टि चाहिए।
सूचना स्रोत
शब्दशिल्प
पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति


				
