आशंका

आज मेरे विद्वान् मित्र कविहृदय सहृदय दयाशंकर जी का फोन आया, वैसे तो प्रतिदिन हमारी बातचीत होती रहती है। वो साहित्य के स्रष्टा एवं अगाध साहित्य प्रेमी भी हैं। प्रायः हम बातचीत के दौरान साहित्य को लेकर भी अपनी चर्चा का विस्तार करते हैं। वो अच्छे विज्ञ होते हुए भी अग्रजत्व के कारण मुझे अत्यन्त श्रृद्धास्पद भाव से देखते हैं जिसका कारण उनकी स्वभावगत नम्रता एवं वृद्ध पूज्यजनों द्वारा प्रदत्त संस्कारभूमि है।

आज बातचीत करते हुए उन्होंने एक विशेष निकट भविष्य में सम्भविष्यमाण समस्या की ओर सङ्केत किया जिससे मेरा साधारण परिचय तो था, साथ ही कुछ अनुमानित समस्या की चर्चा एक बार मैंने श्री हंसराज ‘हंस’ से भी की थी। किन्तु इतना गहरा प्रभाव होगा वो मैंने कभी नही सोचा था।

आज बात ही बात में उन्होंने कहा कि आपके द्वारा प्रणीत जितनी भी संस्कृत/हिन्दी की कविताएं हैं,उनको तुरन्त प्रकाशित करवा दीजिए। अत्यधिक विलम्ब होने पर आपको इस विलम्बता मूल्य समधिक प्रत्यर्पित करना होगा। मैंने कहा – “भाई आज आपकी बातें द्राविड़ प्राणायाम जैसी लग रही है”

कृपया तात्पर्यार्थ स्पष्ट करें……

भाई आज लोग AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) प्रविधि का उपयोग कर हैं। भले ही यह प्रविधि कृत्रिम हो किन्तु विद्वान् नैसर्गिक बन रहे हैं विद्वत्सभा में। आज वास्तविक अवास्तविक का भेद मिट गया है। यह प्रविधि मनोनुकूल श्रेष्ठ कविता, लेख,कथादि रचने में समर्थ है। अभी तो आपके पास समय है जो कुछ आपने सृजित किया है सबको प्रकाशित करवा दो, नहीं तो बाद में आप द्वारा प्रणीत समस्त रचनाओं को AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) द्वारा प्रणीत माना जायेगा।

बात सुनकर मैं आश्चर्य सरित् में पडा-सा अपने आप को अनुभव कर रहा था। यदि ऐसा होगा तो क्यों कोई व्याकरण पढ़ेगा? क्यों कोई शास्त्रपारायण करेगा? क्यों कोई अमरकोशादि शब्दकोशों को पढेगा? क्यों कोई काव्य के लक्षणों को पढेगा?

जब इन सबके अध्ययन के बिना ही इनके फल की प्राप्ति सम्भव हैं।

सूचना सृजक

महेश शास्त्री