अद्भुत अवसर

अद्भुत अवसर

हिंदू–मुस्लिम गुर्जर समाज का रक्षा बंधन पर्व पर अभिनव सामूहिक आयोजन

मेरठ, 17 अगस्त।

भारत की धरती पर सदियों से पर्व और त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहे, बल्कि सामाजिक एकता, भाईचारे और सांस्कृतिक विरासत के जीवंत प्रतीक बने हैं। इन्हीं पर्वों में से एक है रक्षा बंधन, जो बहन और भाई के रिश्ते को सुरक्षा, विश्वास और स्नेह की डोर में बांधता है। इसी पावन अवसर पर मेरठ के हापुड़ रोड स्थित नए आरटीओ कार्यालय के समीप नूरजहां मंडप में एक ऐतिहासिक और अनूठा आयोजन देखने को मिला, जब हिंदू और मुस्लिम गुर्जर समाज ने मिलकर रक्षा बंधन का पर्व मनाया।

इस आयोजन की अध्यक्षता हापुड़ जिले के गुर्जर परियोजना के संयोजक श्री राजबल सिंह ने की और मंच संचालन का दायित्व श्री योगेन्द्र जी ने निभाया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ समाजसेवी श्री सूर्य प्रकाश टांक उपस्थित रहे, जिन्होंने अपने प्रेरक मार्गदर्शन से आयोजन की गरिमा बढ़ाई।

प्रस्तावना और विचार-विमर्श

गुर्जर परियोजना मेरठ प्रांत के संयोजक डॉ. अशोक चौधरी ने विस्तृत प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए गुर्जर समाज की भौगोलिक स्थिति, ऐतिहासिक परंपराओं और आपसी सौहार्द्र पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किस प्रकार गुर्जर समाज ने हर दौर में सामाजिक एकता और सांस्कृतिक संरक्षण का कार्य किया है।

मुस्लिम गुर्जर समाज की ओर से श्री नूरुद्दीन चौहान और मौलाना शान मोहम्मद ने अपने विचार रखते हुए कहा कि रक्षा बंधन का पर्व केवल धार्मिक महत्व का प्रतीक नहीं, बल्कि इंसानियत और रिश्तों की पवित्रता का उत्सव है। उन्होंने इसे हिंदू–मुस्लिम एकता का सशक्त उदाहरण बताते हुए कहा कि जब दो समुदाय एक साथ बैठते हैं और पर्व मनाते हैं, तो समाज में दूरियों की दीवारें टूटती हैं।

महिला प्रतिभागियों में डॉ. नीलम सिंह ने रक्षा बंधन पर्व के महत्व को भावपूर्ण शब्दों में व्यक्त करते हुए कहा कि यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को तो जोड़ता ही है, साथ ही समाज के हर व्यक्ति के प्रति सुरक्षा, सम्मान और सहयोग की भावना को भी पुष्ट करता है।

राखी का भावपूर्ण दृश्य

आयोजन का सबसे विशेष और भावुक क्षण वह था जब हिंदू और मुस्लिम गुर्जर समाज की सभी महिलाओं ने सामूहिक रूप से मंच पर उपस्थित पुरुषों को राखी बांधी। यह दृश्य केवल परंपरा का निर्वाह नहीं था, बल्कि यह स्पष्ट संदेश था कि इंसानियत की डोर हर धार्मिक विभाजन से ऊपर होती है।

रक्षा बंधन और भारतीय संस्कृति का गहन अर्थ

रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति का वह अनमोल पर्व है, जो बहन की रक्षा की पवित्र प्रतिज्ञा और भाई की सुरक्षा के वचन को अभिव्यक्त करता है। यह पर्व केवल रिश्तेदारी तक सीमित नहीं, बल्कि व्यापक सामाजिक ताने-बाने को मजबूती देने का अवसर भी है। जब हिंदू और मुस्लिम गुर्जर समाज एक साथ रक्षा बंधन मनाते हैं, तो यह भारत की “विविधता में एकता” की अद्भुत मिसाल बन जाती है।

गुर्जर समाज की विशिष्टता – रोटी-बेटी का रिश्ता

भारतीय ग्रामीण जीवन में गुर्जर समाज का एक अद्वितीय पहलू यह भी है कि यहाँ हिंदू और मुस्लिम गुर्जर समुदायों के बीच आज भी रोटी-बेटी जैसे गहरे सामाजिक रिश्ते कायम हैं। यह परंपरा केवल खानपान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विश्वास, अपनापन और साझी संस्कृति का प्रतीक है। यह उदाहरण विश्व को यह संदेश देता है कि धर्म का भेदभाव इंसानियत और सामाजिक रिश्तों के आगे कभी भी स्थायी नहीं रह सकता।

विशिष्ट उपस्थिति

इस अभिनव आयोजन में अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। इनमें प्रमुख रूप से शाकिर भड़ाना, इमरान सारंगपुर, डॉ. सुशील भाटी, डॉ. हरेंद्र सिंह, डॉ. तस्वीर सिंह चपराना, श्री वेदप्रकाश, श्री सुरेन्द्र भड़ाना, श्री महिपाल सिंह चौधरी, श्रीमती रीमा सिंह (प्रांत सह-संयोजिका), श्रीमती रेशमा राणा, श्रीमती सुदेश भड़ाना, श्रीमती सीमा खां, श्रीमती श्वेता त्यागी एवं श्रीमती रूपा जैन के नाम उल्लेखनीय हैं।

निष्कर्ष और अपील

यह आयोजन इस बात का सशक्त प्रमाण है कि भारतीय त्योहार केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं होते, बल्कि वे सामाजिक एकता और भाईचारे की नींव को मजबूत करने वाले अवसर होते हैं। रक्षा बंधन का यह सामूहिक उत्सव हिंदू और मुस्लिम गुर्जर समाज के आपसी विश्वास और रिश्तों की गहराई को दर्शाता है।

इस अवसर पर आयोजकों की ओर से यह भी अपील की गई कि इस प्रकार के संयुक्त कार्यक्रम केवल मेरठ या हापुड़ तक सीमित न रहें, बल्कि इन्हें अन्य जिलों और राज्यों में भी आयोजित किया जाए। यदि समाज के विभिन्न वर्ग इस तरह साथ बैठकर त्योहार मनाएं तो धर्म और जाति की दूरियाँ स्वतः मिट जाएँगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए सौहार्द्र, विश्वास और एकता की अमिट मिसाल कायम होगी।

सूचना स्रोत

श्री (डॉ) अशोक चौधरी जी

पाठ्य उन्नयन और विस्तार

प्रस्तुति