ऐसा करो

ऐसा करो

ऐसा करो!

तैयारी ऐसी करो कि जिन्दगी निखर जाए।

हुंकार ऐसी भरो कि दुश्मन भी बिखर जाए।।

मेहनत ऐसे करो कि सर्वश्रेष्ठ नम्बर आए।

भाग्य लकीरें ऐसी भरो कि जन-जन के पास खबर जाए।।

करणी ऐसी करो कि ईश्वर भी झुक जाए।

भक्ति ऐसी करो कि प्रकृति भी रुक जाए।।

दृष्टि ऐसी बनाओ कि सबमें अपने नजर आएं।

मंजिल ऐसी सजाओ कि सपने सारे संवर जाएं।।

राह के काँटों को ऐसे चुनो कि चलना आसान हो जाए।

मन के भावों को ऐसे गुनो कि विरोधी हमारे पाषाण हो जाए।।

वाणी ऐसी बोलो कि दुश्मन भी मुस्कराए।

रचना ऐसी लिखो कि पढ़ने वाला भी आनन्द पाए।।

रचनाकार

मुकेश कुमावत मंगल

रघुनाथपुरा खरेडा टोडारायसिंह

टोंक (राजस्थान)

प्रस्तुति