बारिश के दिन
कागज की कश्ती को तैराने के दिन आ गए,
कल-कल बहते झरनों में स्नान के दिन आ गए,
अभी हमारे चारों ओर प्रकृति अनुकूल है इसलिए,
पेड़ लगाकर,प्रकृति का श्रृंगार करने के दिन आ गए।
किसानों के खेत जोतने के दिन आ गए,
व्यापारियों के खाद बीज बेचने के दिन आ गए,
आसमां में बादल छाए,सावन-सी झड़ी लगी है,
हाथ में छाता,तन पर रेनकोट पहनने के दिन आ गए।।
रिमझिम बारिश में भीगते स्कूल जाने के दिन आ गए,
घर पर बैठे गरम-गरम पकोड़े खानें के दिन आ गए,
चारों ओर ताल-तलैया पानी से तर-बतर नजर आते है,
स्टाफ के साथ मिल,पिकनिक मनाने के दिन आ गए।।

जल कुण्डो में मेंडक के टर्र-टर्र करने के दिन आ गए,
बागानों में कोयल की मधुर वाणी सुनने के दिन आ गए,
चारों ओर खलियानों में पंख फैलाए मोर नाचने लगे हैं,
हर शिवालय में ओम नमः शिवाय गाने के दिन आ गए।।
रचनाकार
मुकेश कुमावत ‘मंगल’
टोंक (राजस्थान)
छायाचित्र
गूगल से
प्रस्तुति