भाव अभिव्यक्ति

भाव अभिव्यक्ति

अजमेर, 18/08/2025

प्रिय युवाओं,

भारत एक ऐसा देश है जिसकी पहचान केवल उसकी भौगोलिक सीमाओं से नहीं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक विविधता से होती है। यह विविधता हर गाँव, हर शहर, हर बोली और हर रीति-रिवाज में झलकती है। हमारे यहाँ जीवन के हर छोटे-बड़े अवसर को त्योहार के रूप में मनाने की परंपरा है। यही परंपरा हमारी जीवंत संस्कृति का प्रतीक है।
त्योहार हमें रंगों से नहीं, रिश्तों से रोशन करते हैं। युवा पीढ़ी जब परंपरा अपनाती है, तो संस्कृति अमर हो जाती है।”
तीज-त्योहार केवल रीति या परंपरा नहीं हैं, ये लोक जीवन की धड़कन हैं। ये हमें प्रेरित करते हैं कि जीवन का असली सुख केवल पाने में नहीं, अपितु बाँटने में है। सावन की तीज जहाँ प्रकृति और नारी की पावन शक्ति का उत्सव है, वहीं राखी का धागा भाई-बहन के रिश्तों की गहराई दर्शाता है। दीपावली का प्रकाश अंधकार से ज्ञान की ओर ले जाता है और होली के रंग भेदभाव मिटाकर मिलन का संदेश देते हैं।
हर पर्व है एक दीपक, जो हमें अंधेरों से निकालता है। युवा हाथों से जब ये दीप जलते हैं, तो पूरी संस्कृति उजाला पाती है।”
मेरे नौजवानों,
आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी और आधुनिक जीवनशैली में कहीं ऐसा न हो कि हमारी ये परंपराएँ केवल तिथि पत्र (कैलेंडर) की तारीखों तक सिमट जाएँ।
इन पर्वों की सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को समझना हमारी ज़िम्मेदारी है।ये त्योहार हमें-प्रकृति के साथ तादात्म्य सिखाते हैं । ये
रिश्तों की मिठास और मानवीय संवेदनाओं को गहराते हैं और समाज में सामूहिकता व एकता का भाव जगाते हैं।
सोचिए, यदि तीज पर झूले न हों, यदि होली पर हँसी न गूँजे, यदि दीपावली पर दिया न जले-तो जीवन कितना नीरस हो जाएगा! त्योहार ही वह रंग हैं जो जीवन के कैनवास को सुंदर बनाते हैं।
“लोक जीवन के तीज-त्योहार हमें हँसना, बाँटना और साथ चलना सिखाते हैं। हे युवन्यु, इन्हें संजोना ही सच्ची आधुनिकता है।”
भारत के जवानों,
आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि हमारी संस्कृति केवल किताबों में लिखी हुई चीज़ नहीं है, बल्कि यह हमारी सांसों में बसी है।
आधुनिकता की आंधी में परंपराएँ कहीं खो न जाएँ—इसका दायित्व अब आपके कंधों पर है। ये पर्व हमें प्रकृति से जोड़ते हैं, रिश्तों को गहराते हैं और समाज में एकता का सूत्र पिरोते हैं।
आप जब तीज-त्योहार मनाएँ तो उसे केवल उत्सव न मानें—बल्कि उसे अपनी संस्कृति की जीवंत धरोहर मानकर अगली पीढ़ी तक पहुँचाएँ।
याद रखिए-
“जो अपनी जड़ों से जुड़ा है, वही भविष्य में ऊँचा और अडिग खड़ा रह पाता है।”
आप अपनी परंपराओं और त्योहारों से जितना जुड़े रहेंगे, उतना ही सशक्त, संवेदनशील और रचनात्मक बनेंगे। और तभी आप नवभारत के सशक्त निर्माता भी कहलाएँगे।
“तीज-त्योहार केवल उत्सव नहीं,
ये हमारी संस्कृति की साँसें हैं। जो इनसे जुड़े रहते हैं,
वे ही अपनी जड़ों में शक्ति पाते हैं।”

शुभेच्छु
डॉ. छाया शर्मा

प्रस्तुति