ऊपर जो चित्र निवर्तमान महापौर मेरठ सुशील गुर्जर के द्वारा साझा किया गया है उसमें भगवान श्रीकृष्ण का विराट भाव दिखाई दे रहा है और उसके नीचे लिखा हुआ है –
“पार्थ
याद रखना लोग गिराने के लिए धक्का ही नहीं सहारा भी देते हैं।”
इसका भावार्थ
यह संदेश अर्जुन (पार्थ) को संबोधित है।
श्रीकृष्ण यह बता रहे हैं कि संसार में लोग केवल प्रत्यक्ष रूप से ही नहीं, बल्कि परोक्ष रूप से भी किसी को गिराने का प्रयास करते हैं।
धक्का = प्रत्यक्ष प्रहार, विरोध, अपमान या हानि पहुँचाना।
सहारा = कपट से दिया गया समर्थन, जिससे व्यक्ति को लगे कि कोई साथ है, लेकिन वास्तविकता में वह सहारा गिराने का कारण बन जाता है।
अर्थात् कभी-कभी लोग सामने से शत्रु बनकर नुकसान नहीं करते, बल्कि मित्रता, सहानुभूति या सहारे के नाम पर गुमराह करते हैं।
पूर्व महापौर जी ने इसे क्यों चुना होगा?
राजनीति और समाज में यह कथन बहुत गहराई से जुड़ा है।
अक्सर राजनीति में खुले विरोधियों से ज्यादा ख़तरनाक छल करने वाले मित्र होते हैं।
एक नेता को यह याद रखना पड़ता है कि हर ‘सहारा’ सच्चा नहीं होता।
संभवतः उन्होंने यह उद्धरण इसलिए चुना होगा ताकि लोगों को संकेत दे सकें कि वे भी ऐसे अनुभवों से गुज़रे हैं, जहाँ ‘सहारे’ ने ही उन्हें गिराने का काम किया।
👉 सरल शब्दों में:
यह संदेश सावधान करने वाला है — जीवन में केवल धक्के से ही नहीं, बल्कि झूठे सहारे से भी गिराया जा सकता है। इसलिए विवेक से पहचानना जरूरी है कि कौन सच्चा सहारा है और कौन गिराने वाला।