कट्टी बट्टी (कहानी)
स्कूल से घर पहुंचते ही मुन्ना ने चुगली खाई कि आज स्कूल में मुन्नी को डांट पड़ी।
माँ ने तो कुछ खास नहीं कहा पर, मुन्नी हो गई लाल टमाटर। अंगूठे के नाखून को दांत से कट बुलाकर कहा “कट्टी”।
सुबह स्कूल जाते रिमझिम बारिश में दोनों का मन खुराफात करने को होने लगा। पर कैसे करें? मुन्नी तो कट्टी है।
अचानक मुन्ना को आइडिया आया। उसने जेब में से कागज की नाव निकाली। जिसे देखकर मुन्नी की आंखें खुशी से फैल गई, पर वह झट उदास भी हो गई।
मुन्ना उसे थोड़ी ना देगा।
इतने में मुन्ना ने एक और कागज की नाव जेब से निकाली और पीछे मुड़कर कर कहा “मुन्नी”
मुन्नी ने झट से दो उंगलियों से वी बनाकर होठों पर रख कर बोला “बट्टी”।
और दोनो पानी में अपने जहाज चलाने लगे।
रचयिता
भावना शर्मा©️
जिन्दगी के प्रतिमान
जमाने में जिंदगी ने
कई प्रतिमान गढ़े हैं
पर बहुत कुछ ऐसा है
जो इन खांचो से परे है
तोलती दुनिया में
चाहे कदम अकेले हैं
उस एक से सम्वेदनाओं
के सारे पल हरे हैं
जो है इकहरा, जीवटता से
भरा मुस्कुराता चेहरा
अपने अंधियारों, अपने
उजालों को स्वीकारता चेहरा
जो विरक्त है दूसरों की राय के प्रति
जो सशक्त है प्रकृति के न्याय के प्रति
जिसे जान कर लगता है
हवा में उड़ती हल्की सी
शख्सियत के
मूल जमीन में कितने गहरे हैं
जो आँखों को
आईने सी नज़र आती है
जो ना मिलकर भी मिल जाती है
जिसकी चुप्पी सताती है
जिसकी हंसी छू जाती है
अभिमान के पास स्वाभिमान
की रेखा पर खड़ी हुई
जिसने जीवन के
सारे रंग भरे हैं
जिसके साथ होने से
जीवन अमीर हो जाए
जो ना होकर भी
हर जगह मुस्कुराए
लक्ष्य को सनसनाता तीर
मिजाज की फकीर
जिसने जमीन पर नहीं
हृदय पर अपने चिन्ह धरे हैं
उस एक से सम्वेदनाओं
के सारे कोंपल हरे हैं।
रचयिता
भावना शर्मा ©️
काव्य रचना की गाथा
बोए जाते हैं जख्म
उग आती है कविताएं
व्यथाओं की उष्ण शाख
पर भर आती है कविताएं
अभावों की प्रताड़ना में
भावों के संप्रेषण में
क्रोध के पोषण में
मजबूरी में शोषण में
देह से आत्मा तक
उतर आती है कविताएं
दुख के गहरे घाव में
सुख की छिछली छांव में
दर्द की तपती आह में
प्रीत की पनाह में
चेहरे पर लकीरों सी
उभर आती है कविताएं
शांति की शीतलता सी
चांदनी की स्निग्धता सी
कुमुदिनी के खिलने सी
हिमकणों के पिघलने सी
आंचल के सितारों सी
धरा से नभ तक
बिखर आती है कविताएं।
रचयिता
भावना शर्मा ©️
प्रस्तुति