🐤कहाँ खो गयी गौरैया? डाली-डाली नीम की खाली, कहाँ खो गयी गौरैया? चीं-चीं-चीं-चीं करती उड़ती, भूरी-चितकबरी गौरैया।। सूनी पड़ी अटारी मेरी, दाना-पानी अटा पड़ा।💧 नीड़ पुराना बना बनाया, छज्जों के…
बान्ध ‘परिण्डे’ डाली-डाली,चहक रही है,चिड़ियाँ काली। फुदक-फुदक कर,चीं-चीं-चीं करती,आँगन बीच रेत में नहाती। चोंच मारती, पंख खुजलाती, बैठ डाल पर, गीत सुनाती। कभी इधर उड़े, कभी उधर उड़े, तिनका-तिनका, ले…
नशीले जाल में उलझा हुआ है नौजवां मेरा। भटकते आज मंजिल से, होगा हाल क्या तेरा? इन्हें रास्ता है दिखलाना, यही ईमान है मेरा। नशीले जाल से सुलझे, यही अरमान…
भूमिका राजस्थान की प्रख्यात कवयित्री मंजुला जी प्रस्तुत गीत में अपनी भाषा में भावों की अभिव्यक्ति से चमत्कृत करती हैं। आइए महसूस कीजिए गीत में निहित कल्पना, माधुर्य और भावों…
भूमिका कवि, स्तंभकार और व्यंग्यकार श्री केदार शर्मा जी का उलझन सुलझन के सर्वप्रथम योगदान के लिए उनका हार्दिक आभार। सर्दी की ऋतु का चला, कुदरत में अब राज। जीव…
भूमिका श्री मुकेश कुमावत 'मंगल' द्वारा रचित नवीनतम कविता 'यह ज़िन्दगी' जीवन के प्राकृतिक असंतुलनों को दर्शाती है। यह कविता जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्ष, और संतुलन की कमी को उजागर…