छोटी-सी सीख, बड़ा बदलाव
मेरा अनुभव
जीवन में अक्सर कुछ छोटी-छोटी घटनाएँ हमें ऐसी सीख दे जाती हैं जो हमारे पूरे भविष्य को बदल देती हैं। मेरा एक व्यक्तिगत अनुभव इस सत्य को और पुख्ता करता है।
बी.एस-सी. फाइनल के दिनों में मुझे फिज़िक्स प्रैक्टिकल लैब में सीखने का बहुत शौक था। बड़ी उत्सुकता से मैं हर सप्ताह लैब में पहुँचती, लेकिन बार-बार एक ही स्थिति होती—प्रोफेसर साहब लिस्ट से नाम पढ़कर प्रयोग समझाते और क्लास समाप्त हो जाती। मेरा नम्बर आता ही नहीं था। लगातार तीन हफ्ते यही क्रम चलता रहा। स्वाभाविक था कि मेरे मन में निराशा और गुस्सा भर गया। तीसरे हफ्ते तो मैंने बैग और फाइल उठाई और यह सोचकर बाहर निकलने लगी कि
“अगर मेरा नुकसान होगा तो नुकसान प्रोफेसर साहब का भी होगा।”
तभी अचानक किसी के मुँह से एक वाक्य मेरे कानों में पड़ा—
“एकलव्य को किसी ने सिखाया था?”
यह वाक्य बिजली की तरह मेरे मन में उतरा। क्रोध तुरंत शांत हो गया और मैं वापस लैब में लौट आई। उसी दिन से मैंने संकल्प लिया कि चाहे कोई मुझे सीधे सिखाए या न सिखाए, मैं स्वयं सीखूँगी। मैंने प्रोफेसर साहब को द्रोणाचार्य मानकर एकलव्य की तरह अभ्यास शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि मैंने लैब के सारे प्रयोग न केवल सीख लिए, बल्कि आत्मविश्वास भी पा लिया।
आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो समझ आता है कि यदि उस दिन मैंने गुस्से में कॉलेज छोड़ दिया होता, तो शायद आज अपनी और अपने बच्चों की ज़िंदगी सँवारने का अवसर ही न मिलता।
प्रेरणा क्या है?
यह अनुभव बताता है कि—
* सीखने का भाव गुरु से नहीं, हमारे भीतर से जन्म लेता है।
* आत्मप्रेरणा सबसे बड़ा शिक्षक है।
* क्रोध और हार मानना हमें आगे बढ़ने से रोकते हैं, जबकि धैर्य और लगन हमें सफलता की ओर ले जाते हैं।
जिंदगी में अक्सर छोटी-सी बातें, छोटे-से वाक्य या किसी का साधारण-सा व्यवहार भी हमें गहरी प्रेरणा दे सकता है। बस ज़रूरत है उन संकेतों को पहचानने और उन्हें अपने जीवन में उतारने की।
👉 यही संदेश है:
“यदि हम सीखने की ललक बनाए रखें, तो परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, मंज़िल हमें ज़रूर मिलती है।”
स्मरण रहे कि
पाठ्य उन्नयन और विस्तार व प्रस्तुति