चूज़ी होकर हम क्या-क्या खोते चले जाते हैं

🌿 चूज़ी होकर हम क्या-क्या खोते चले जाते हैं?
(पुरातन सूत्र — “उलझ उलझ सुलझाना सीखो” के संदर्भ में एक जीवनमूलक विचार लेख)

जीवन के रास्ते पर चलते हुए हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि जीवन का सौंदर्य उसकी सहजता में है, न कि उसकी चयनशीलता में।
हर पल, हर व्यक्ति, हर परिस्थिति कुछ सिखाने आती है — लेकिन जब हम “चूज़ी” यानी ‘अत्यधिक चयनशील, आलोचनात्मक या सुविधा-प्रेमी’ हो जाते हैं, तब हम अनुभवों के उस रस को खो देते हैं जो जीवन को जीने लायक बनाता है।

🌾 भीड़ से परहेज़ या अनुभव से भागना?

आदर्श और विनेश की यात्रा इसका सटीक प्रतीक है।
जब कार चालक विनेश ने यह कहकर वाहन रोक दिया कि “मैं भीड़ में नहीं चलाता,” तो उसने अपने *कौशल की सीमा* तय कर ली — जबकि भीड़ का सामना करना भी जीवन के कौशल का ही एक हिस्सा है।
आदर्श यह देखकर मौन हो गया कि *कितने लोग अपनी सहजता के नाम पर अवसरों से किनारा कर लेते हैं।*
कहीं यही तो कारण नहीं कि आज अनेक लोग *सुविधा के छोटे से घेरे में घुटते हुए भी अपने अहंकार को ‘सिद्धांत’ का नाम देते हैं*?

🌿 चूज़ीपन का दूसरा रूप — जीवन की ऊष्मा से दूरी

कभी सोचिए —
हम खाने में चूज़ी हो गए,
संबंधों में चूज़ी हो गए,
व्यवहार में चूज़ी हो गए,
और अब अनुभवों में भी चूज़ी हो चले हैं।

यह चूज़ीपन हमें बेहतर नहीं बनाता, बल्कि हमें जीवन के विविध रसों से काट देता है।
जो व्यक्ति हर बात में ‘मेरे ढंग से’, ‘मेरे समय पर’, और ‘मेरे हिसाब से’ की जिद रखता है, वह दरअसल जीवन की बहती धारा में तैरना छोड़ देता है।
फिर वह चाहे कला हो, संबंध हों या कार्य — हर जगह वही ठहराव, वही ऊब।

🌺 पुरातन संदेश — उलझ उलझ सुलझाना सीखो

हमारे पुरखों ने जीवन को ‘समाधान का विद्यालय’ कहा है।
उन्होंने यह नहीं कहा कि “उलझन से बचो,” बल्कि कहा —

“उलझ उलझ सुलझाना सीखो, यही जीवन का सार है।”

क्योंकि जो उलझता नहीं, वह सुलझाना भी नहीं जान पाता।
और जो सुलझाना नहीं जानता, वह विकास नहीं कर सकता।

हर उलझन जीवन के किसी नए रंग से परिचय कराती है।
भीड़, परिस्थिति, असुविधा — ये सब हमारे अनुभव को मांजने वाली भट्टियां हैं।
जो उनसे डरते हैं, वे अपनी चमक खो देते हैं।

🌿 चूज़ीपन के परिणाम — खोते अवसर, घटता आत्मबल

1. अनुभव का अभाव: जो हर परिस्थिति में सुविधा ढूंढता है, वह अनुभव के गहराई भरे सबक से वंचित रह जाता है।
2. संबंधों का ह्रास: चूज़ी लोग साथ निभाने में कठिन होते हैं; वे केवल ‘अपनी पसंद’ के लोगों में सीमित रह जाते हैं।
3. सृजन का अवरोध: जीवन की सृजनशीलता तभी खिलती है जब हम विविध परिस्थितियों से गुजरते हैं — आरामदायक दायरे में नहीं।
4. मानसिक दुर्बलता: असुविधा से डरने वाला मन धीरे-धीरे आत्मविश्वास खो देता है।

🌾 जीवन को गुनने की कला

“जीवन को गुनना” मतलब — हर अनुभव में जीवन की मिठास और कड़वाहट दोनों को महसूस करना।
भीड़ में चलना, असुविधा में हंसना, दूसरों की गति के साथ तालमेल बैठाना — यही तो जीवन का रस-ग्रहण है।
यदि हम चूज़ी होकर उससे दूर भागेंगे, तो जीवन केवल एक यांत्रिक दिनचर्या बनकर रह जाएगा।

जैसे संगीत में सुरों के साथ बेसुरे स्वर भी होते हैं, वैसे ही जीवन के राग में असुविधा भी उसका आवश्यक हिस्सा है।
जो केवल सुरीले स्वर ही चाहते हैं, वे संगीत नहीं — केवल शोर सुनते हैं।

🌿 अंततः — सहज बनो, संवेदनशील बनो, चूज़ी नहीं

हर भीड़, हर कठिनाई, हर ठहराव — जीवन के महान शिक्षक हैं।
उन्हें नकारना, स्वयं को विकास से वंचित करना है।
इसलिए अगली बार जब जीवन की भीड़ सामने दिखे, तो गाड़ी रोकने के बजाय धीरे-धीरे उसमें उतरने का साहस करें।

क्योंकि—

“जीवन उनका नहीं जो चुनते हैं,
जीवन उनका है जो अपनाते हैं।”

उलझन सुलझन और जनचेतना मिशन
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