दादा जी

दादा जी

बाल कविता

।। दादा जी।।

दादा जी का मोटा डंडा

कर देता हम सबको ठंडा।

हम छड़ी उसी को कहते हैं

जब मार पड़े तो सहते हैं।

ऐनक उनको सदा सुहाता

धोती कुर्ता मन को भाता।

साथ सदा वो गमछा रखते

हल्का फुल्का खाना चखते।

 

हमें बताते अच्छी बातें

खेल खेल में ही समझाते।

बैठ पीठ पर जब मैं जाता

सेर मजे से कर मैं आता।

 

दादा दादी लगते प्यारे

सब लोगों से है ये न्यारे।

दादी जब भी कहे कहानी

लगती है वो सबसे ज्ञानी।

 

इन दोनों की कर मैं सेवा

पा लूंगा इसका फिर मेवा।

इनका जब आशीष मिलेगा

मन मेरा ये खिल जायेगा।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा, टोंक

राजस्थान

चित्र के लिए श्रेय

गूगल क्रोम

प्रस्तुति