दोहावली – बाबूलाल ‘नायक’

दोहावली – बाबूलाल ‘नायक’

भूमिका

भारत में शीत ऋतु का प्रकोप आमतौर पर नवंबर से फरवरी तक रहता है। इस समय में तापमान में गिरावट विभिन्न क्षेत्रों में संलग्न मानव संपदा के समक्ष विविध किस्म की चुनौतियां पेश करती है। बावजूद इसके भारतीय समाज में कार्यकर्ताओं की लगन और मेहनत इस मौसम में भी उनकी कार्यक्षमता बनाए रखने में सहायक होती है। विविध क्षेत्रों के मानव श्रम मौसम के कहर को अपने जीवट से निष्प्रभावी कर देते हैं। भारत में शीत ऋतु स्थानीय मानव संपदा की मेहनत, अनुशासन और समर्पण का प्रतीक है कि प्राकृतिक चुनौती भले ही कितनी भी बड़ी हो, भारतीय कार्यबल हर परिस्थिति में अपनी कार्यक्षमता को बनाए रखता है। कुछ इसी भाव के साथ श्री बाबूलाल नायक ने इस दोहावली की रचना की है स्थितियों, परिस्थितियों और मानव श्रम के जीवट को अभिव्यक्ति देते हुए। आनंद लीजिए उनकी दोहावली का।

🇮🇳💥दोहावली 💥🇮🇳

पाला पड़ता ठंड से, फसलें सब मुरझाय।

किस्मत को ही कोसते, सभी ठगे समझाय।।१।।

 

कठिन परिश्रम सब करें, लेय राम का नाम।

जिंदगी आशीष भरे, जीते लोग तमाम।।२।।

 

निश-दिन करते चौकसी, शीतल चले बयार।

हाड कंपाय लोहड़ी, अँख-नक छूटे धार।।३।।

 

खेतों में फसलें फ़लीं, रह-रह हुलसे शाम।

ईश्वर को भजते सदा, नित उठ करते काम।।४।।

 

कर्म हि करना जानते, करते सब विश्वास।

इक दूजे का साथ दे, भरते हैं उल्लास।।५।।

 

निर्धनता में भी कभी, नहीं खोय विश्वास।

फिर से करते साधना, लेकर मन में आस।।६।।

 

ठंड से न डरते कभी, चले कुदाल उठाय।

खेतों में पानी ढले, खुशियाँ बहुत मनाय।।७।।

 

खेतों में सरसों फली, पीली चादर ओढ़।

मधुर पान करती उड़े, मधुमक्खी बेजोड़।।८।।

 

फूल खिरै फ़लियाँ फ़लीं, पौधा झुक-झुक जाय।

भर अंगड़ाई दम्भ की, मन ही मन मुस्काय।।९।।

 

खून पसीने से रचा, अद्भुत यह संसार।

सजा सुहागन सा दिया, धरती का श्रृंगार।।१०।।

 

अद्भुत साहस सदा करे, हो निर्भय दिन-रात।

लोकहित दंभ सा भरे, नायक नित प्रभात।।११।।

रचयिता

‘नायक’ बाबूलाल नायक

टोंक (राजस्थान)