डॉ अम्बेडकर के कथन से सीखें

डॉ अम्बेडकर के कथन से सीखें

“साक्षरता का असली मूल्य: समाज के प्रति उत्तरदायित्व”

डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों की रोशनी में

डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिनकी बुद्धिमता और दूरदृष्टि ने भारत को एक समतामूलक संविधान दिया, उन्होंने शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा माध्यम माना। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना या नौकरी हासिल करना भर नहीं होना चाहिए, बल्कि एक साक्षर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने ज्ञान से समाज को दिशा दे, उसे जागरूक बनाए और विकास की ओर अग्रसर करे।

जब शिक्षा मात्र आत्मकेंद्रित हो जाती है

आज के दौर में शिक्षा का उद्देश्य प्रायः व्यक्तिगत सफलता तक सीमित होकर रह गया है। छात्र डिग्री तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन समाज के प्रति अपने दायित्व को भूल जाते हैं। डॉ. अंबेडकर ने इसी प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की थी। उनका स्पष्ट मत था –

“यदि पढ़े-लिखे लोग समाज में कोई योगदान नहीं देते, तो उनके शिक्षित होने का कोई औचित्य नहीं बचता।”

साक्षरता और योगदान: एक आवश्यक संबंध 

साक्षर व्यक्ति का कार्य है कि वह निरक्षरों को जागरूक करे, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करे, और समाज में सकारात्मक सोच का विकास करे। शिक्षा को व्यवहार में अर्थात अमल में लाना ही उसका असली अर्थ है। एक साक्षर नागरिक जब समाज में न्याय, समानता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है, तब शिक्षा वास्तव में सार्थक होती है।

सामाजिक योगदान से खुलते हैं सफलता के द्वार  

जब कोई व्यक्ति समाज की सेवा करता है, तो वह केवल दूसरों का नहीं बल्कि स्वयं का भी उत्थान करता है। सामाजिक सेवा से आत्मसंतोष प्राप्त होता है, लोगों का विश्वास और सहयोग मिलता है, और एक सकारात्मक पहचान बनती है। यही पहचान आगे चलकर सामाजिक, व्यावसायिक या राजनीतिक सफलता के द्वार खोलती है।

डॉ. अंबेडकर का जीवन – एक आदर्श उदाहरण

स्वयं डॉ. अंबेडकर ने अपने जीवन को समाज की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने शिक्षा को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को ऊपर उठाने का माध्यम बनाया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि शिक्षा तभी पूर्ण होती है जब वह समाज की बेहतरी में उपयोग हो।

आज जरूरत है कि हम डॉ. अंबेडकर के इस विचार को न केवल समझें, बल्कि अपनाएं भी। समाज के साक्षर नागरिकों को चाहिए कि वे अपने ज्ञान, अनुभव और समय का कुछ अंश समाज के लिए भी दें। तभी एक शिक्षित राष्ट्र का सपना साकार हो सकेगा – जहाँ हर व्यक्ति न केवल खुद आगे बढ़े, बल्कि दूसरों को भी साथ लेकर चले।

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डॉ भीमराव अंबेडकर का कथन

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