श्योराज जी की कलम से

श्योराज जी की कलम से

मत्तगयंद सवैया

राम

सोच-विचार करे मत मानव, राम-रसायन है जब पासा
राम करे जब होय यहाँ सब, राम भजो सब छोड़ निराशा।
प्रेम सजा अपने मन मंदिर, खूब रखो सबसे फिर आशा
सुंदर है जिनका मुखमंडल, प्यार कहे जिनकी परिभाषा।

मत्तगयंद सवैया

कृष्ण

मोहन की मुरली सुन के सब, अंबर में खग नाच रहे हैं
पेड़ सजे लहराकर पावन, प्रेम खड़े हरि बाँच रहे हैं।
फूल खिले चहुं ओर दिशा सब, जो मन की कह साँच रहे हैं
ये मुरलीधर तान सुनाकर, साँच धरा पर जाँच रहे हैं।

धेनु पुकार रही तुमको सब, आप बिना अब कौन हमारा
घूम रही हम हैं सड़कों पर, बैरी बना जग है यह सारा।
पेड़ कटे फिर खेत बने सब, गोचर भूमि नहीं अब चारा
याद करें किसको अब मोहन, पास नहीं जब पालनहारा।

दोहे

उपजाता जो खेत में, परिश्रम करके धान।
भरता सबका पेट है, कहते उसे किसान।।

मातृभूमि की रक्षा हित, रहते जो तैयार।
वो ही वीर जवान है, नहीं मानते हार।।

जो मजदूरी कर सदा, बनाते हैं मकान।
उन लोगों के साथ में, रहते हैं भगवान।।

महान उसको जानिए, जिसके अच्छे कर्म।
सदा निभाता साथ में, अपना मानव धर्म।।

खोल राखिए प्यार की, अपने पास दुकान।
सबसे ही कर लीजिए, आप जान पहचान।।

 मत्तगयंद सवैया

।।राम।।

राम कहो कह दो रब या फिर, कृष्ण कहो उनको तुम प्यारा
श्याम कहो भगवान कहो तुम, या जग का फिर पालनहारा।
एक सदाशिव है जिसने बस, रूप अनेक धरा पर धारा
अंतर क्यों करता इसमें जब, एक समान सजा जग सारा।

।।शिक्षक।।

हे! शिक्षक तुमको भी अब तो, साथ समय के ढलना होगा
पग पग पर लहराते काँटे, हटा उन्हें फिर चलना होगा।

रात अंधेरी है दुनिया में, सब लोग यहाँ बस सोते हैं
मोटी मोटी बातें करके, हसीन सपनों में खोये हैं।
भोर यहाँ फिर लाने खातिर, दीपक बनकर जलना होगा
हे! शिक्षक तुमको भी अब, साथ समय के ढलना होगा।

राजनीति है जग पर हावी, जो पग पग पर टोक रही है
इस कर्तव्य पथ पर बढ़ने से, आज तुम्हें जो रोक रही है।
चाणक्य सा फिर बनना होगा, जरा तुम्हें सम्भलना होगा
हे! शिक्षक तुमको भी अब तो, साथ समय के चलना होगा।

बालक है नादान जानकर, ज्ञान उसे नव सिखलाना होगा
भारत के हो कर्णधार तुम, कहकर पथ दिखलाना होगा।
की सवालों के जवाब भी, अपने मन में हलना होगा
हे! शिक्षक तुमको भी अब तो, साथ समय के ढलना होगा।

शक्ति संगठन में होती जब, ताकत का उपयोग करो तुम
सम्मान लौट फिर से आये, यत्न यही पुरजोर करो तुम।
समय निकल जाने पर फिर तो, हाथ तुम्हें ही मलना होगा
हे! शिक्षक तुमको भी अब तो, साथ समय के ढलना होगा।

ख़त

मैं अपने जज्बात लिख रहा हूँ
अपने मन की बात लिख रहा हूँ।

बादल सी उमड़ी है जो मन में
आज वही बरसात लिख रहा हूँ।

इस ख़त से ही देखो यारो मैं
प्यार की शुरुआत लिख रहा हूँ।

मेरे हालचाल कुशल क्षेम सब
अपने मैं दिन रात लिख रहा हूँ।

कर रहा हूँ मैं शत्रु का सामना
ख़त सीमा से तात लिख रहा हूँ।

आऊंगा छुट्टियों में मैं घर पर
ढोक तुझे हे! मात लिख रहा हूँ।

लद गये हैं अब वो चिट्ठियों के दिन
उनकी मैं औकात लिख रहा हूँ।

सुख दु:ख हंसी मजाक नोकझोंक
ख़त में सब हालात लिख रहा हूँ।

जय मां शारदे 🙏🙏

मत्तगयंद सवैया

।। जल।।

भाप बना फिर बादल ये जल, आन पड़ा अब भू पर सारा
ताल भरे कर बाँध लबालब, सागर से मिलती जल धारा।
भू लगती फिर खूब सुहावन, ज्यों उतरा अब पालन हारा
सावन माह सजे मन में जब, बरस पड़े घन आकर प्यारा।

 

सार छंद

बता दो महावीर हनुमान, कब वापस आओगे
संकट में है प्राण लखन के, कब बूटी लाओगे?

रात अंधेरी गहराई है, छाया घोर अंधेरा
दूर बहुत द्रोणागिरी पर्वत, असुरों का है डेरा।
किस विध हे! बजरंगी बली, पर्वत पर जाओगे
संकट में है प्राण लखन के, कब बूटी लाओगे?

मेघनाद के शक्ति बाण से, मूर्छित लक्ष्मण भैया
तुम्हीं पार लगाओ अब तो, डूब रही है नैया।
बूटी की पहचान बता दो, कैसे तुम पाओगे?
संकट में है प्राण लखन के, कब बूटी लाओगे?

मुक्तक

मां तो मां होती है मां का, होता दूसरा विकल्प नहीं
मां की सौगंध से बड़ा, इस दुनिया में और संकल्प नहीं
जन्म देकर पालती है वह, बड़ा कर चलना सिखाती है
ममता का अथाह सागर है, किसी के लिए भी जो अल्प नहीं।

बेटी खिलखिलाती है जब, दुनिया घर आंगन में बहारें लाती है
मंडराती है मात-पिता के इर्द-गिर्द, तितली बन उड़ जाती है
बुनती है हसीन सा घोंसला, खुद सपनों के तिनके बुन बुन
रिश्तो का ताना-बाना बुनकर, बुलाये जब घर वापस आती है।

सार छंद

।।प्रेरणा गीत।।

छोड़ो सब जंजाल जगत के, हरि चरणों को ध्याओ
धर्म कर्म कर निज हाथों से, मन से पाप हटाओ।

बीत गया है जीवन सारा, तेरी मेरी करते
झूठी शान दिखाने खातिर, धन दौलत ही भरते।
प्यार प्रेम का बादल बनकर, सब पर जल बरसाओ
छोड़ो सब जंजाल जगत के, हरि चरणों को ध्याओ।

सुख-दु:ख का पावन है रिश्ता, दिल से इसको मानो
फल की इच्छा त्यागो मन से, कर्मों को पहचानो।
ज्ञान दीप से करो उजाला, जग में फिर फैलाओ
छोड़ो सब जंजाल जगत के, हरि चरणों को ध्याओ।

चार दिनों का जीवन है यह, मत नफ़रत को पालो
दे सबको मुस्कान लबों पर, खत्म इसे कर डालो।
गीत प्यार का इस दुनिया में, मिलकर सबसे गाओ
छोड़ो सब जंजाल जगत के, हरि चरणों को ध्याओ।

अपना क्या और पराया क्या, जग है ये बैगाना
सदा जीव का रहता इस पर, आना है फिर जाना।
दु:ख में मत पछताओ तुम, सुख में मत हर्षाओ
छोड़ो सब जंजाल जगत के, हरि चरणों को ध्याओ।

सार छंद

।।उस पथ पर मत जाना।।

नहीं जहाँ सम्मान मिले कुछ, उस पथ पर मत जाना
चले गये गर उस पथ पर तो, फिर होगा पछताना।

सत्पथ पर जो चलता यारो, वीर वहीं कहलाता
संकट में भी डटकर रहता, मंजिल अपनी पाता।
झूठ फरेबी धंधा करके, मत दौलत तुम पाना
नहीं जहां सम्मान मिले कुछ, उस पथ पर मत जाना।

संस्कार रख निज जीवन में, सुख से जीना सीखो
क्रोध बना जो दुश्मन अपना, उसको पीना सीखो।
सफल बनाकर जीवन अपना, गीत प्रीत का गाना
नहीं जहां सम्मान मिले कुछ, उस पथ पर मत जाना।

रिश्वत का‌ पैसा भी भैया, दो दिन ही है टिकता
मानव उसको तुम मत मानो, जो पैसों में बिकता।
स्वाभिमान को रखकर जिंदा, मन ही मन हर्षाना
नहीं जहां सम्मान मिले कुछ, उस पथ पर मत जाना।

चलते चलते थक मत जाना, जारी रखना चलना
थक कर बैठ गये तुम गर तो, हाथ पड़ेगा मलना।
हार नहीं मानो जीवन मे, कहता यही जमाना
नहीं जहां सम्मान मिले कुछ, उस पथ पर मत जाना।

सार छंद

।।कैसे जगत रचाया।।

देख कला ईश्वर की यारो, सिर मेरा चकराया
हरी भरी धरती पर सुंदर, कैसे जगत रचाया?

पर्वत कई खड़े हैं प्यारे, जिनसे झरने झरते
पेड़ निराले लगे बहुत से, मन सबका ही हरते।
सूरज चंदा ने ही मिलकर, धरती को चमकाया
देख कला ईश्वर की यारो, सिर मेरा चकराया।

रंग भरा है इस दुनिया में, रब ने खुद हाथों से
मधुर दिया संगीत सजाकर, हमको स्वर सातों से।
जीव बनाये लाखों में ही, अलग अलग दी काया
देख कला ईश्वर की यारो, सिर मेरा चकराया।

सबसे सुंदर जीव बनाया, रब ने देखो मानव
इसे बनाने से ही पहले, मारे थे सब दानव।
आज बना जो फिर से दानव, नहीं जरा शर्माया
देख कला ईश्वर की यारो, सिर मेरा चकराया।

रंग बिरंगी तितली उड़ती, चिड़िया गान सुनाती
बसंत में जब फूल खिले हों, कोयल मन को भाती।
धरती करे पुकार यहाँ जब, जल इस पर बरसाया
देख कला ईश्वर की यारो, सिर मेरा चकराया।

बाल गीत

।। गुरुजी।।

गुरुजी मुझको लगते प्यारे
इस दुनिया में सबसे न्यारे।

बड़े प्यार से है समझाते
सबसे पहले शाला आते।
खेल जानते है वो सारे
गुरुजी मुझको लगते प्यारे।

जब जब मैं शाला में जाता
खड़ा सामने उनको पाता।
विषय पढ़ाते जो है सारे
गुरुजी मुझको लगते प्यारे।

सिखलाते वो करना विनती
और सिखाते अक्षर गिनती।
दिखलाते वो दिन में तारे
गुरुजी मुझको लगते प्यारे।

ज्ञान बताकर दुनिया भर का
देते हैं फिर कारज घर का।
रहते हैं वो धीरे धारे
गुरुजी मुझको लगते प्यारे

शिष्य बना मैं उनका प्यारा
काम समय पर करके सारा।
शिक्षक प्यारे बने हमारे
गुरुजी मुझको लगते प्यारे।

सार छंद

।। आजादी।।

दिखे तिरंगा लहराता तो, लोग सभी हर्षाते
इस पर जान लुटाने वाले, याद तभी हैं आते।

आजादी का दिवस निराला, मुश्किल से है आया
रक्त बहाया वीरों ने जब, रंग बसंती छाया।
जिन्हें मिली यह सहज भाव से, करते हैं बस बातें
दिखे तिरंगा लहराता तो, लोग सभी हर्षाते

लड़ी लड़ाई गोरों से थी, जब वीरों ने मिलकर
हमें मिली जब ये आजादी, हंसे तभी थे खिलकर।
अगर न मिलती आजादी तो, कैसा जीवन पाते
दिखे तिरंगा लहराता तो, लोग सभी हर्षाते।

भगत सिंह को देखो तो तुम, हंसते जान गंवाई
पर नहीं गुलामी गैरों की, उसके मन को भाई।
मातृभूमि की खातिर मरते, वीर वही कहलाते
दिखे तिरंगा लहराता तो, लोग सभी हर्षाते।

आजादी का मतलब है अब, अपनेपन को सीना
अपनी खातिर मरना है बस, अपनी खातिर जीना।
मिलकर रहना गायब है अब, गायब रिश्ते नाते
दिखे तिरंगा लहराता तो, लोग सभी हर्षाते।

रचनाकार

श्योराज बम्बेरवाल ‘सेवक’

मालपुरा

प्रस्तुति