गर्व से भरी आँखें

गर्व से भरी आँखें

जब एक बेटी बनी राष्ट्र स्तरीय विनर,

तो दूसरी ने अतिथि व्याख्याता बन रचा इतिहास

किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बड़ा सुख वह क्षण होता है जब उनकी संतान केवल उनके *सपनों* का हिस्सा नहीं, बल्कि *उनके साकार गर्व* का परिचायक बन जाती है।

मेरठ के एक दंपति के जीवन में यह सुखद क्षण तब
आया जब उनकी आज्ञाकारी और सृजनशील पुत्री ने *इंडियन स्टैटिस्टिकल सर्विसेज़* में *प्रथम स्थान* प्राप्त कर अपनी कर्मनिष्ठा का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया; जबकि दूसरी युवती एक प्रतिष्ठित संस्थान में *अतिथि व्याख्याता* के रूप में आमंत्रित हुई, जहाँ उसने अपने ज्ञान और व्यक्तित्व की गरिमा से विद्यार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों सभी को गौरव का अनुभव कराया।

बचपन से ही इन बेटियों में *जिज्ञासा, अनुशासन और नवसृजन की ललक* थी। जहाँ अन्य बच्चे खिलौनों से खेलते थे, वहाँ ये तकनीक, कला और विचार की त्रिवेणी में भविष्य खोजती थीं। माता-पिता ने उनकी हर जिज्ञासा का सम्मान किया, सीमाओं से परे सोचने की स्वतंत्रता दी — और वही स्वतंत्रता आज उनकी पहचान बन गई।

मेरठ की प्रतिभाशाली पुत्री ने विद्यालय *के.एल. इंटरनेशनल* में ही अपनी मेधा का परिचय दे दिया था। आगे चलकर *दिल्ली विश्वविद्यालय* में उत्कृष्ट प्रदर्शन और तत्पश्चात प्रतियोगी परीक्षा में शीर्ष स्थान प्राप्त कर उसने यह सिद्ध कर दिया कि *परिश्रम और विनम्रता* जब संग-साथ चलते हैं, तो सफलता स्वयं रास्ता बनाती है।

वहीं बेंगलुरु में रह रही दूसरी युवती ने अपनी रचनात्मकता को तकनीक से जोड़ा — *ऑगमेंटेड रियलिटी* के क्षेत्र में वह नयी दिशाएँ गढ़ने लगी। दस वर्षों की अनवरत साधना ने उसे एक ऐसी तकनीकी कलाकार बना दिया, जो हर प्रोजेक्ट में *भावनात्मक गहराई और सौंदर्य का अद्भुत संयोजन* जोड़ देती है।

माता-पिता के लिए वह क्षण किसी वरदान से कम नहीं था, जब उन्होंने अपनी अपनी बेटियों को अपने-अपने क्षेत्र में *प्रकाशस्तंभ* बनते देखा —
एक, जो विश्लेषण और गणित की दृढ़ भूमि पर खड़ी है;
और दूसरी, जो सृजन और नवाचार के आसमान को रंग रही है।

शायद उसी क्षण उनके मन में यह अनुभूति उठी होगी —

> “हमने केवल बेटियाँ नहीं पालीं, हमने दो विचारों को जन्म दिया है — जो अब सैकड़ों मनों में प्रेरणा बनकर फैल रहे हैं।”

इन दोनों की सफलता का सौंदर्य इस बात में है कि उन्होंने *विनम्रता* को कभी नहीं छोड़ा।
आज भी वही आदर, वही सहजता —
क्योंकि संस्कार केवल सिखाए नहीं जाते, *जीए* जाते हैं।

और जब बेटियाँ अपने कर्मों से परिवार का नाम रोशन करती हैं, तब माता-पिता के आशीर्वाद का प्रकाश न केवल उनके जीवन को, बल्कि पूरे समाज को दिशा देने लगता है।